Poem on Modern Life-आधुनिक युग


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कुछ गाड़ियों में चलते है कुछ टुकड़ो पर पलते है,

कुछ ऐ सी में रहते है कुछ सड़को पर सड़ते है,

इन्शानियत को भूलकर लोग धर्मो के लिए लड़ते हैं,

लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है ।

इस दुनियाँ में भी लोग अजीबोगरीव रहते है,

कुछ इंग्लिश का पउआ लगाते कुछ रोटी को तरसते है,

बुजुर्गो को ठुकराकर लोग गाय को माता कहते है,

कुछ दुःखों से वंचित तो कुछ हँसते हँसते सहते हैं,

लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है ।

गरीबो की मेहनत पूँजीपति खा रहे हैं,

आजकल के विद्यार्थी यो यो हनी सिंह गा रहे है,

पेड़ दिन बा दिन तेजी से काटे जा रहे है,

खुद जंगल कटवाकर धरती को माँ कहते है,

लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है ।

बेघर हुए जंगली को जो जानवर कहते है,

वो क्या जानें असली जानवर तो शहरो में रहते है,

रेप की घटनाएँ इस कदर हो रही हिंदुस्तान में,

इंसानियत मिटती जा रही है आज के इंसान में,

कुछ लोग बेटियों को धरती का बोझ समझते  है,

लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है।

कोई अपनों को खोता है कोई भूखे पेट सोता है,

जिंदगी के सफ़र में हर गरीब रोता है,

बहुत से झमेले हैं इन दर्द गमो के मेले में,

जीकर भी तू मर रहा गुमनामी और अकेले में,

जिंदगी तो मेहमान है पल दो पल जी लेने में,

हर दुःख और हर गम हँसकर पी  लेने में,

किसी को होती नहीं सूखी रोटी तक नसीब,

कोई खिला रहा कुत्तो को ब्रेड बटर के पीस

इन ब्रेड बटर को देखकर बदनसीबो के दिल मचलते है,

लानत है इस युग पे जिसे आधुनिक कहते है ।

-राहुल कुमार

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