Hindi Poem on Rape – बेटी की अस्मत

कुण्डी ना खड़काओ चुप रहो आज महीनो बाद मेरी बच्ची सोई है
आँखे सूजी और गायब है हाँसी उसकी सारी बिना गुन्हा के रोई है

धीमी करवा दो पड़ोस के टीवी में चल रहे समाचारो की आवाज
काँप उठेगी फिर से वो सुना अगर फिर किसी ने आज अस्मत खोई है

बड़ी चर्चाओं को सहना है , बड़े दुखो को कहना है अभी फैसला तो दूर है
की कैसे और कब लूटी है अस्मत सिर्फ यही चर्चा हो रही है !!

चंद भेडियों की गलती पर इन्सनियत ने चुप्पी सादी है
अगर शेरो ने खाल पहन ली है डरकी तो शेरनियां भी क्यों सोई है

कौन क्या करेगा यही डर है सबको इसी सोच पर कितनी बेटियां रोई है
अरे कुण्डी ना खड़काओ चुप रहो आज महीनो बाद मेरी बच्ची सोई है !!

-अश्वनी कुमार

3 thoughts on “Hindi Poem on Rape – बेटी की अस्मत”

  1. I like your poem

    And plz can I take first line of your poem for my song plzz …I could mention your name

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