Hindi Poem on Objects-हाँ हूँ मैं

हाँ हूँ मैं
नया अभी
कवि नहीं
कवि कभी
जो चाहे कह लो,
जो सोचो
वही सही
हा पर मैं
हूँ कही
था सही
हूँ सही
मन की बात
कहुँ कभी
पर माने मेरी
कोन सही
पागल हूँ मैं
यही सही
क्यो भाई
“हाँ सही”
समाज अभी
क्या कहे
पल में बदले
देखो सभी
जाने कहाँ
मुझे अभी,
अभी कुछ भी
ना सही,
हा कहे
सो कहे
बेकार मुझे
ना कहे
अभी शुरू
हूँ ही,
क्या कहूँ
क्या कहूँ
नया रूप
देख मेरा
मुझसे पूछे
सब अभी
ना कहूँ
क्या कहूँ
“अभी बस शुरूआत सही”
अभी नहीं
अभी नहीं,
हाँ कुछ हूँ
पर अभी नही
याद करेगे
कभी कभी,
इक पागल था
यही कही
हाँ हूँ. मैं
नया अभी
कवि नहीं
कवि कभी
– मनोज कुमार बदलानी

8 thoughts on “Hindi Poem on Objects-हाँ हूँ मैं”

  1. याद करेगे
    कभी कभी,
    इक पागल था
    यही कही
    हाँ हूँ. मैं
    नया अभी
    कवि नहीं
    कवि कभी
    lajwab kavita hai parantu bahut hi badhiya laga aapki ye panktiya…

  2. Hindi looks so beautiful!

    Hope you follow and check out my book/blog, too! It’s a book, so good to start from the beginning (Prologue/Intro/ Chapter 1…). Press menu, chapters for the chapters in order. Would love some feedback.

    Have a great day there!

    P.S. An error message comes up when I try to follow your blog. 🙁

  3. संजीद होने में क्या है, कठिन है पागल हो जाना…. इस कविता में मैंने उसको चरितार्थ होते हुए देखा है, अच्छी पहल है….👍

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