Hindi Poem by Daughter to her Father on her Marriage-Beti Ka Dard

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बेटी का दर्द
पापा मुझे यूँ ओझल न कर अपनी नज़रों से…
पापा मुझे यूँ ओझल न कर अपनी नज़रों से…
माना दुनिया की रीत है ..
माना दुनिया की रीत है..
फिर भी
पापा मुझे यूँ ओझल न कर अपनी नज़रों से…
पापा मेरे तुम कहते थे मैं तुम्हारी बेटी नहीं बेटा हूं
तो क्या कोई बेटे को विदा करता है ..
पापा मुझे यूँ ओझल न कर अपनी नज़रों से..
पापा मुझे यूँ ओझल न कर अपनी नज़रों से..
-मयूरी श्रीवास्तव

4 thoughts on “Hindi Poem by Daughter to her Father on her Marriage-Beti Ka Dard”

  1. पिता का प्यार, पुत्री के नाम

    ख़त लिखा हैं दिल से, तुम दिल में बसी हो बन मेरी जान,
    दिल की धड़कन शुरू हैं तुमसे, मेरी हर दिन रात तेरे ही नाम,

    ना जुदा खुद से कर सकता, ख़ुदगर्ज़ी में हैं मेरा नाम,
    क्या कोई जी भी सकता, शरीर लिया बीना अपनी जान,

    तू मेरे नयनों की हो रोशनी, बिन तेरे मेरा संसार जो अधूरा,
    क्यों जुदा करूँ मैं खुदसे, जब हम दो शरीर पर हैं एक जान.

  2. बेटियाँ पापा की जान होती हैं।बहुत ही भावुक कविता है।

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