
समय कुछ ऐसा आया है
समय आया ही कुछ ऐसा है कि
लबों पे बातों से ज्यादा खामोशी अच्छी लगने लगी है
सोचा ना था कभी ऐसा भी समय आएगा कि
इंसान सांस के एक-एक कतरे के लिए केहराएगा
किसी हँसते खिलखिलाते परिवार का एक लौता चिराग
ज़िंदगी और मौत का दरवाज़ा खट खटाएगा .
तोह कोई बच्चा अपने माँ बॉप की ज़िंदगी के लिए
अस्पताल दर अस्पताल ठोकरें खायेगा
सोचा ना था कभी की ऐसा समय भी आएगा
खुद के अपने मुश्किल में हो
फिर भी इंसान मदद करने से कतराएगा
सोचा ना था कभी की ऐसा अजीबो गरीब समय भी आएगा
क्या अमीर क्या गरीब दोनो को जिंदगी के एक मोड़ पर ले आएगा
सांसों की इस लड़ाई में कोई जीतेगा तोह कोई हार जाएगा
कभी सोचा ना था की ऐसा भी समय आएगा
अपनों के देखभाल के लिए अपनों से जुदा होना पड़ जाएगा
बदन को अतरंगी चीज़ों से ढक कर दूर से ही होंसला बढ़ाना पड़ जाएगा
सोचा ना था की एक ऐसा भी समय आ जाएगा
–अजित कुमार चौबे