Hindi Poem on Covid Pandemic-कोरोना महामारी पर कविता

बेबस धरा

उमंग सी किलकती धरा,

हरी ओढ़नी ओढे भू-धरा।

मायूस हो गई है क्यूँ ऐ बता,

क्या खता हमारी अक्षम्य सी।

है प्रण अब रक्षा हम करे,

अपनी धरा के खजानों की।

दे रही है जो हमें जीवनदान,

हम क्यूँ न सहेजे ऐसा मूल्यवान।

होते इस संकट से पार,

जिसके जन है सबसे बङे गुनहगार।

आज न होती बेबस धरा,

गर हम न दोहरे जन्नत सी धरा।

है प्राण वायु के लाले पङे,

धरती ने क्या हमें कम दिए।

पर न समझ हम रह गए,

जो अब सबब दे रही धरा।

है चीत्कार फैला यहाँ,

श्मशान भी पटे है पङे।

क्या जान की कीमत अब समझ रहें,

तो बचा लो इस धरोहर को सदा।

जो दे रही खूबसूरत धरा,

गुनहगार है हर शख्स यहाँ।

प्रकृति ले रही हिसाब यह,

अब तो समझ लो।

क्यूँ है ये बेबस धरा।।

दीक्षा सिंह

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