
अंदर बैठा रावण
जो सालों पहले ही मर गया, उसको हर बार जलाते हो,
मिनटों की शौखों की खातिर पैसा तुम व्यर्थ बहाते हो।
बुराई की पराजय का तुम क्यों ये ढोंग रचाते हो,
जो अंदर बैठा है छिप के, उसको क्यों भूल जाते हो।।
पूछो खुद से!! क्या खुशियाँ मनाने का यह एकमात्र तरीका है?
पूछो खुद से!! वायु मलिन कर खुशियाँ मनाना, क्या यह सुगम सलीका है?
पूछो खुद से!!
न किसि का बुरा करो और न ही कुछ गलत सहन करो,
जो करना है तो अंदर बैठे रावण का तुम दहन करो।।
बुराई पे अच्छाई की जीत के नाम पे, रावण दहन हर बार करोगे,
सच में अच्छाई तब जीतेगी, जब तुम जन जन से प्यार करोगे।।
छल जलन, निंदा कपट को मारो प्यारे,
मझधार में अटकी नईया, लग जाएगी आप किनारे।।
–शान्तनु मिश्रा