हमने तो कोरोना ही पेल दिया माना थोड़ी संकट की घड़ी आयी है , कहीं चिंता तो कहीं तन्हाई है पर हमने तो खेल ऐसा खेल दिया हमने तो कोरोना को ही पेल दिया |
करते नहीं कुछ काम है चल रहा अपना आराम है हाथ धोकर हमने और दूर धकेल दिया हमने कोरोना को पेल दिया |
हाँ, खाने पे ज़ोर थोड़ा ज्यादा है , पर वो काम तो माँ के खाते में आता है पर बहाने तो माँ के भी तैयार हैं कहती है घर में तेल का हाहाकार है और फिर फिर क्या माँ को चुपचाप लाके तेल दिया, और फिर से हमने तो कोरोना को ही पेल दिया || -मोहित सिंह चाहर ‘हित’
ये कैसी महामारी है जो हर देश पर पड़ रही भारी है । कैसे इस समस्या का समाधान करें जब बड़े बड़े देशों ने हार मानी है। बाहर से हम कितने ही निडर बने रहें पर सबके दिल मे न जाने कितने डर है पल रहे। कहीं लेट न जाऊं मैं मृत्युशय्या पर , कहीं इस बार मेरे परिवार की तो नही बारी है। हरा देंगे कोरोना तुझको हम मिलकर इन शब्दों का संचार सबके मुख से जारी है । पर कितनी इन शब्दों में सच्चाई है ?? हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं अधरों पर दुआ और आँखों से निकल रहा पानी है।। मोदी जी इस कहर से बचा लो हमें अभी तो रचनी हमें नए भारत की कहानी है🙏🙏 -कल्पना सागर
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