
छोटी सी गुड़िया
माँ और बाबुल की
खुशियों की पुड़िया
नाज़ों से उसको था पाला
ज़माने की बुरी नज़र से
सदा उसको संभाला
लेकिन विधाता को
था कुछ और ही मंज़ूर
दरिंदों राक्षसों के हाथों
हुई वो चकना चूर
न हैवानियत की कोई हद्द है
और अगर कोई थी भी
तो वो सब अब रद्द है
आज तो समाज में
क्रूरता और छल का
है नंगा नाच
दूसरे का सर कुचल दो
पर खुद की हवस
पर न आये आंच
ये कैसा भारत है
मैं देख कर हूँ हैरान
क्या ये वही भूमि है जहाँ
सीता राम की है अभिमान
कुछ करो देशवासियों
भगवन से ज़रा तो डरो
ऐसे भयंकर पाप
करने से पहले तुम डरो
अगर नहीं माना तुमने
और फिर भी किया मन-माना
तो फिर नरक में रह कर होगा
कल्पों तक बस पछताना
- अनुष्का सूरी