मृत्यु का भय
जब बुढ़ापा आता है,
मृत्यु का भय सताता है।
कल रहूँ या ना रहूँ ,
हर पल डराता है!
जब बुढ़ापा आता है ।।
जो आता है वह जाता है,
प्रकृति ऐसे नियम क्यों बनाता है??
इस नियम को वह तोड़ता क्यों नहीं?
“मृत्यु कि दिशा” को मोड़ता क्यों नहीं??
जब बुढ़ापा आता है,
शरीर को मरियल बना जाता है, “
हड्डियों को कमज़ोर, दाँतो का साथ” तक छूट जाता है!
जब बुढ़ापा आता है,
मृत्यु का भय सताता है।।
मृत्यु को कभी रोका नहीं जा सकता ,
प्राकृतिक नियमों को बदला नहीं जा सकता,
मृत्यु तो एक नए जीवन का पैग़ाम है!!!
इसलिए “हर प्राणी कुछ दिनों का ही मेहमान है” ।।
-आदित्य कुमार