लूट के ज़िंदगी वो मासूमों की ज़िंदगी को तार तार कर गये,हज़ारों माँ-बापों को रुला के वो ज़िंदगी बेज़ार कर गये,हर शाम अब तन्हा है ना घर में अब कोई शोर है, पसरी है वीरानियाँ, हर आंख में आँसुओं का ज़ोर है,कभी देखते उस माँ का दिल जो अब कभी ना मुस्कुराएगा, अब ना किसी को कोई पापा कहके बुलायेगा,रोती रहेगी अब हर आंख जब याद उनकी आयेगी, शायद अब उनकी दुनिया फिर ना मुस्कुराएगी,इंसानियत के दुश्मनों ने दुनिया को ज़ार ज़ार कर दिया, बहके खून मासूमों का इंसानियत को तार तार कर दिया,कौमों को जो दिखाते हैं धर्म की एक झूठी दुनिया उनमें ना खुदा का खौफ है, इंसानियत को तबाह करने का ये चला कैसा दौर है,हर मुल्क हर जामूरीयत ये जान ले इंसानियत के दुश्मन तो सिर्फ दुश्मन हैं, जिनको मिटाके फिर से मुस्कुराना है,ज़िंदगी को कहना है, हर आतंकी से जंग जीत जाना है,फिर ना झेले कोई वंश ये पेशावॉर सा, फिर ना सूनी हो गोद किसी की, ना वीराना सा आंगन हो, यही खुदा से इल्तजा है, यही हर नरम आंख का कहना है|-गौरव
Monthly Archives: December 2014
Hindi Poem on Christmas – देखो क्रिसमस है आया
Hindi Poem for Dear Brother-मेरा भाई तरुण

मेरा भाई तरुण
सीधा सादा सा,
पतला सा लम्बा सा,
है मेरा तरुण.
प्यार सा लगता है जब वो बाते करता है
पर जेसा भी है मेरा भाई तरुण है..मस्ती मज़ाक करता है,
पर भावनाओं की कदर करना भी जानता है.
तस्वीरें एडिट करता है,
प्यार सा लगता है जब वो बाते करता है
पर जेसा भी है मेरा भाई तरुण है..मस्ती मज़ाक करता है,
पर भावनाओं की कदर करना भी जानता है.
तस्वीरें एडिट करता है,
खुद को एडिटर कहता है,
तारीफ करो to चने के झाड़ पे चढ़ता hai,
पर जरूरत पड़ने पर साथ चलना भी जानता है..
जैसा भी है मेरा bhai तरुण है.परिवार उसकी जान है
दोस्त उसकी शान है और बहन का प्यार उसकी आन है..
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.जब भी आंसू देखता है मेरी आखों में
पर जरूरत पड़ने पर साथ चलना भी जानता है..
जैसा भी है मेरा bhai तरुण है.परिवार उसकी जान है
दोस्त उसकी शान है और बहन का प्यार उसकी आन है..
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.जब भी आंसू देखता है मेरी आखों में
तो पूछता है क्या हुआ?
पागल ये नहीं जानता कि ये आंसू ग़म के नहीं
उस जैसे भाई के मिलने की खुशी के हैं..
चिढ़ाता है, परेशान करता है, कभी कभी रुला भी देता है,
पर मेरे होठों पे मुस्कुराहट लाना भी जानता है.
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.अकड़ू है, गुस्से वाला है, क्यूट है, भुलक्कड़ है,
पर अपने वादे निभाना जानता है वो.
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.छोटी छोटी बातें उसे समुन्दर जितनी लगती हैं,
बड़ी बड़ी बातें उसे प्याले जितनी लगती हैं,
टेन्षन लेता है, दुखी होता है, पर हंसना ख़ूब जानता है.
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.दोस्त है उसके बहुत पर उनमें कोई ख़ास भी है,
मस्ती करता है लड़कियों के साथ, पर अपनी हदें ख़ूब पेहचानता है..
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.जब मिलते हैं तब घंटों बाते किया करते हैं,
चिढ़ाता है, परेशान करता है, कभी कभी रुला भी देता है,
पर मेरे होठों पे मुस्कुराहट लाना भी जानता है.
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.अकड़ू है, गुस्से वाला है, क्यूट है, भुलक्कड़ है,
पर अपने वादे निभाना जानता है वो.
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.छोटी छोटी बातें उसे समुन्दर जितनी लगती हैं,
बड़ी बड़ी बातें उसे प्याले जितनी लगती हैं,
टेन्षन लेता है, दुखी होता है, पर हंसना ख़ूब जानता है.
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.दोस्त है उसके बहुत पर उनमें कोई ख़ास भी है,
मस्ती करता है लड़कियों के साथ, पर अपनी हदें ख़ूब पेहचानता है..
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है.जब मिलते हैं तब घंटों बाते किया करते हैं,
दिन कब शुरू होता है और रात कब खत्म होती है पता ही नहीं चलता,
बिन कहे समझ जाता है मेरे दिल की बात,
है ऐसा रिश्ता जो तोड़ने से भी ना टूटे..
दुआ है मेरी ये दोस्ती कभी ना छूटे…
जरूरत होती जब भी मुझे उसकी तो हमेशा साथ होता है मेरा भाई,
आशा है कि आगे भी साथ निभायेगा एक बहन का भाई..
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है….
बिन कहे समझ जाता है मेरे दिल की बात,
है ऐसा रिश्ता जो तोड़ने से भी ना टूटे..
दुआ है मेरी ये दोस्ती कभी ना छूटे…
जरूरत होती जब भी मुझे उसकी तो हमेशा साथ होता है मेरा भाई,
आशा है कि आगे भी साथ निभायेगा एक बहन का भाई..
जैसा भी है मेरा भाई तरुण है….
-कविता परमार
Hindi Poem on Mother-जो मां ना होती

जो मां ना होती, तो क्या होता?
सबसे पहले ये संसार ना होता
ममता की बरसात ना होती,
प्यार की कोई बात ना होती,
मां से बढ़ कर धीरज किसका?
है सारे जग में तेज़ उसका
उसके तन से काया ढलती है,
ममता की छाया में औलाद पलती है
मां की छवी कैसी न्यारी
सब बातें उसकी प्यारी प्यारी,
दर्द सभी वो सह लेती है,
दान जीवन का वो देती है,
वो जननी है दुख हरणी है,
आँखों में आँसूं जब आते हैं,
हाथ मां के सहलाते हैं,
भगवान का एक वरदान है मां,
हमारी ही पहचान है मां,
कभी दिल उसका जो रो उठता है,
धीरज भी जब खो उठता है,
मन को वो समझा लेती है,
ममता की चादर में आँसूं सारे छुपा लेती है,
आज ज़माना बदल गया है,
चमक दमक में सब ढल गया है,
कभी बचपन खुद का याद करो,
कुछ बीती बातें याद करो,
मां की खुश्बू आयेगी,
बहा तुम्हें ले जायेगी,
होती है क्या प्यार की बारिश,
सब कुछ हमें बतायेगी,
ना दुखे कभी किसी मां का दिल,
ये वादा ही तो करना है,
अपनी मां के चरणों में,
सर को ही तो धरना है,
ममता का कोई मोल नहीं,
बिन मांगे मिल जाती है,
मां का भी कोई तोल नही,
पीछे दुनिया रह जाती है|
-किरण गुलाटी