तुलसी दान जो देत है जल में हाथ उठाई | प्रतिग्राही जीवै नहीं दाता नरकै जाई |
संत तुलसीदासजी कहते हैं – जो लोग जल में हाथ उठा के दान (चारा) मछलियों को फ़साने की मंशा से देते हैं, उस दान को ग्रहण करने वाली मछली तो जीती नहीं और वह दाता भी नरक में जाता है |
Tulsi daan jo det hai jal mein hath uthai. Pratigrahi jevai nahin daata narkai jayi.
Saint Tulsidas Ji says- the people who raise their hands to donate food (offer bait) to the fish with the intention of trapping it, the fish feeding on such donation does not live and such a donor also goes to hell.
कौन हूँ मैं आग हूँ आगाज़ हूँ खुद की गलती छुपाने वाला राज़ हूँ झूठा हूँ फ़रेबी हूँ कल से डरने वाला आज हूँ ज़िंदा हूँ मैं ज़िन्दगी में खुद में ही बेतहशा हूँ सपना हूँ मैं आगे का आज का ज़िंदा लाश हूँ लम्हा हूँ में बीते कल का आज का बुरा ख्वाब हूँ गर्मी की धुप सर्दी की छाँव अपने मंज़िल के विपरीत पाव हूँ मैं उत्तर हूँ मैं आगे का आज का प्रश्न चिन्ह हूँ धीमा हूँ ज़िन्दगी मैं कल के धावक के लिए तैयार हूँ गलती हूँ मैं पीछे का आज का नया इंसान हूँ आग हूँ आगाज़ हूँ खुद की गलती मिटाने वाला आज हूँ !
जिंदगी में जब तू हार गया बचा न कुछ भी अपना है रहेगी अंतिम सांस तक जो कुछ है तो तेरा सपना है।
हँसेंगे लोग तेरे सपने पे खींचकर भी कोई गिरायेगा हार न मानना इन मुश्किलों से कभी हर मंजिल फतह कर दिखाना है रहेगी अंतिम सांस तक जो कुछ है तो तेरा सपना है।
हार पराजय मुश्किलों को अगर पकड़ तू रोता रहा छूट जायेगी जिंदगी से ओ भी पल जो तेरे पास पड़ा खजाना है रहेगी अंतिम सांस तक जो कुछ है तो तेरा सपना है।
लहरों से लड़कर जो जीता ओ सिंधु में गोता लगायेगा भर -भर झोला सपनों के मोती बाहर वो ले आयेगा सपने बड़े होतें हैं जिनके खोना भी उतना पड़ता है रहेगी अंतिम सांस तक जो कुछ है तो तेरा सपना है।
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