Hindi Poem on Defeat of Truth-Rota Sach

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रोता सच 

हाँ, देखा है मैंने,कोने में सच को रोता।
गुनहगार को देखा है, गहरी नींद में सोता ।
घुमते है जो, सच का नकाब पहने,
उनको देखा है मैने, अंधेरे में नफरत को बोता।
हाँ, देखा है मैने, कोने में सच को रोता।
दर-दर ठोकर खाते,देखा है मैंने सच को।
झूठी शान के आगे, झुकता देखा है पर्वत को।
गिड़गिड़ता रहा सच, इन्साफ के लिए,
ज़हर बनते देखा है, मैंने भी अमृत को।
झूठ के महासागर में, गहरा सच का गोता।
हाँ, देखा है मैंने, कोने में सच को रोता।
सच के पैरों तले से,ज़मीन देखी है मैंने खिसकती।
मासूम की आँखे, मैने देखी है सिसकती।
गुनहगार कह कर सच को,फांसी पर जब लटकाया।
एक माँ की आँखे, मैंने देखी है सुबकती।
झूठ के हाथों सच को,देखा है मैंने लुटते।
झुठ के कंधे पे,सच की अर्थी को देखा है मैंने उठते।
झूठ के हाथों ,सच को जब दफ़नाया।
कहने लगा सच मुझसे, क्या तू अब भी समझ नहीं पाया।
हम जैसों के साथ कभी, इन्साफ नहीं है होता।
हाँ, देखा है मैंने, कोने मे सच को रोता।
-गरीना बिश्नोई

One thought on “Hindi Poem on Defeat of Truth-Rota Sach”

  1. Behad Umda

    On Dec 27, 2018 8:17 AM, “Hindi Poems|हिंदी कविता संग्रह” wrote:

    > anushkasuri posted: ” रोता सच हाँ, देखा है मैंने,कोने में सच को रोता।
    > गुनहगार को देखा है, गहरी नींद में सोता । घुमते है जो, सच का नकाब पहने, उनको
    > देखा है मैने, अंधेरे में नफरत को बोता। हाँ, देखा है मैने, कोने में सच को
    > रोता। दर-दर ठोकर खाते,देखा है मैंने सच को। झूठी शान के”
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