
नींद तो जन्नत है ।
हर रात की मन्नत है ।
सुकून जिसमें है बहुत,
ये नींद की फितरत है।
क्या दर्द क्या चिंता है ।
ख्याबो में तो शोहरत है।
उनींदी आँखों से पूछो ,
नींद तो ज़रूरत है ।
जीवन से जब हो पलायन ,
हर वासना से उन्मत है ।
सक्रिय मुहूर्त के बाद ,
नींद तो जमैयत है।
-रीत (रितिका ) दाँगी
Beautiful poetry
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Nice lines
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nice poem ritika ji
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Thankyou sir
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नींद की ख़ूबशूरती, क्या बयान किया आपने,
हर दर्द को दूर करने की, दबा को कहते हैं नींद.
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