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अब आप भी अपनी स्वयं रचित कवितायें इस वेबसाइट पर छपवा सकते हैं| कृपया नीचे दिया गया फॉर्म भरें |
Meri Adhuri kahani written by me its very little poem
Meri zindagi ki khuli kitab ho tum
Mere zeene ka ehsaas ho tum
Mere liye ek pyara sa gulab ko tum
Jo hamesha khushbuu deta rehta hai
Tum haste ho to aisa lagta hai jaise sari khusiyan mil gye mujhe
Tere pyar me iskadar doob jaata hu ki din pata lagta hai Na hi shaam
Meri liye har ek se jyaada khaas ho tum
Meri zindagi ki khuli kitaab ho tum
Meri zindagi ki Roshni ho tum
Mere liye gulaab se bhi pyare ho tum
Jab jab tumhe dekhta hu Mujhe aur pyar ho jata hai
Mere liye Pyari si Muraat ho tum
chaand se bhi pyari Surat ho tum
Bhut se Rango se Rangi Tasveer ho tum
Mere liye khuli kitaab ho tum
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ISAME CHHAPATA HAI KI NAHI VAHI VAHI DIKHATA
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YAAD RAKHNA SADA
Hota Jo bas mein , Aaye mere lal, Kar detee yeh dunia , Saaree tere naam, Toad laatee Chand tare , Bhi tere lye , Magar hain seemayen bahut , Kya main karoon , Nahi Kuch pass mere, Duaaon ke siva. Na hogee kamee, Unme kabhi, Bhar doongee unse , Jholiyan teree. ,dunia ki Har khushi, Tujh ko mile Jee bhar ke Hanse tu, Num meree aankh ho, Har Maa ke Dil ki aasheesh hai , Raho muskurate, Khilkhilate raho , Tapken Na aansoon , Na dukh hi kabhi , Aas pass ho , Sukh dukh to hain, sayon ki Terhan , kabi raat andheree , Kabi suprabhat hai , Khona Na dheeraj , YAAD RAKHNA SADA , Sunta hai WOH , Jisne khel Sara rachaya , Dil Maa ka bhi , Usee ne banaya, Hai tumhari khushi mein, Khushi mere Dil ki SADA YAAD RAKHNA Bat mere Dil ki .
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Title-Yadon Ki Mulaqat
Theme-Full of Emotions, Whenever Two Best Friends are separated.
……………………………………………………………………… .Gun-Guna Rha Hu, Tere Lie,
Jane Kuda! Kaho Tum!
Dil Bhi Kitna Rota Hai, Kyon?
Ab Teri Bekhudi Jo,Yu.
😢😢😢😢😢😢😢
Tanha Jiyenge, Marna Hai Jo,
Kishmat Mein Kaaha Mili Hai Tu,
Kisse Puchha Karenge, Khushi Apni,
Teri yaadein Ayengi Yuh,
😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴😴
Dosti Bhi Tere Naam Ki,
Jaam Bhi Tere Kaam Ki,
Jindgi Mein Kyon Ayi, Saahz Lekar,
Jana Tha Jindgi Mein, Kahto Ko Sahaj Banakar,
Adhoore Rah Jayenge, Tumhare Bina,
Agar Dil Toda, Yuh Hansaakar,
Phir Ayunga Agali Baar, Tumhare Main Banakar,
Kabhi Bhool Thi, Kya Sanam,
Kabhi Tum Thi, Ya varsho Ka Gam,
Sda Teri Sahjda Karenge, Na To Warna Gujar Jayenge Hum.
🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋🙋-Written By K.C.
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ए ज़िन्दगी तेरे चेहरे हज़ार
हंसाएं कभी तो कभी रुलाये ज़ार ज़ार
समझना तुझे आसान नहीं,
कहीं होती है रुखसत,
तो कहीं लाती है बहार
दिखाती है कभी वीराणिओ के आसार,
तूफानों से भी कभी करती है पार
दे देती है कभी अश्क़ बेशुमार,
लुटती है कभी प्यार ही प्यार
कभी रह जाती हैं हसरते कई,
कहाँ आता है फिर ज़िन्दगी में खुमार.
खेतए रहते हैं कश्ती,
की उतरेंगे पार
ले जाती है कहीं और
हमें उमंगों की धार.
हो जाता है खड़ा कभी बेडा मंझधार,
और खेने को नहीं मिलता पटवार.
ए ज़िन्दगी तेरे चेहरे हज़ार
बीते पलों पैर न था इख़्तियार,
आने वाले पलों का रहता इन्तिज़ार.
बीत जाता है जीवन, हो जैसी बहार,
नहीं आता कभी जीवन में करार.
रहे कभी तमन्नाओं से दिल गुलज़ार,
वह खिलाये फूल फिर बेशुमार.
यह चाहतों राहतों काहै बाजार,
फिर भी चैन नहीं होता शुमार.
बहारों का हर पल रहता इन्तिज़ार,
पलों ही पलों में खो जाता संसार
ए ज़िन्दगी तेरे चेहरे
कभी हंसाएं तो कभी रुलाये ज़ार ज़ार
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नाम है नरेंद्र दामोदर दास मोदी , हैं वह देश के मंत्री प्रधान,
जो चले हैं बढाने दुनिया में भारत की आन, बान और शान|
आये जबसे मोदी सत्ता में, दौड गई नई उम्मीद की लहर.
एक अकेले बन्दे ने बरपा दिया सभी पाटिॅयों पर कहर|
आते ही सरकार में शुरू कर दी नई योजनायें,
दूर होने लगी जिससे गांवों में बिजली पानी की समस्यायें|
विदेशों से आकर यहाँ नेताआें नें मोदी से मिलाया हाथ,
तो जाकर वहाँ मोदी ने भी खूब selfie खींची सबके साथ|
गये जिस देश भी मोदी कुछ न कुछ लेकर ही आऐ,
जिससे वह 125 करोड़ देशवासियों के कल को बेहतर बनायें|
शुरु किया FDI, Make In India और Skill India Development,
भारत को एक दिन विकसित बनायेगा मोदी का यही Management.
मोदी ने दुनिया में भारत का नाम बहुत कराया,
खुश होकर शेख ने UAE में मंदिर का भरोसा दिलाया|
BY- RIDDHI ASTHANA
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Metropolitan Zindagi :
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Darwaze ki hur dastak ko darkinar karna shaheriyon ki aadat si ho gayi hai !!
Aksar kismat bhi ghanti maar maar ke laut jati hai pareshan hokar
Aur kabhi khuda milne aaya to use bhi wapas jana pada waqt khokar
Subah aur sham ka manzar ek sa hi lagta hai
Bahar kisi ke hone ya na hone se furk bhi kya padta hai
Wo kyun jee rahe hai darbon mein band kabootaron ki tarah
Kya pankh unke bhool gaye hain udne ki kala
Doosron ke kaam aane ko wo sauda galat maan gaye
Rub ki banai duniya ko “bakwas” aur uske hur bande ko “begana” bata gaye
Bade din baad bahar deekhe lekin bina dua salam ke hi phir munh banake andar chale gaye
Aur kyunkar na kare kyunkiiii 🙂
Darwaze ki hur dastak ko darkinar karna shaheriyon ki aadat si ho gayi hai !!
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Game of time / Waqt ka khel :
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Kyun zindagi mein waqt
sakht itna ho jata hai
Gum ki barsake barish
sazish tak kar jata hai
Jab waqt kare barbad
yaad tab hi aata hai daata
Dukh mein doobe bande ka
jud jata hai rab se nata
Sukh ke pul mein bhi na bhula
bula us ishwar ko khush hoke
Waqt ki bhi kya bisaat
ki uski marzi ko toke
————————————————-
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Hi Anushka,
Thanks a lot for publishing my poem “Metropolitan zindagi” with some good alterations.
Today i have sent another poem “Game of time / Waqt ka khel”.
Please have a look if it can have a place on your nice website.
Regards,
Niveta
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Wo aaye hmari jindagi mai is tarah.
ki muje mujse he mila diya..
hamne pocha us se ki kya nouchaavar kre tuj pe.
to aake usne dheeme se mere kaano mai kha..
maa muje sirf tu chaiye jindagi ke liye…
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Kyun zindagi mein waqt
sakht itna ho jata hai
Gum ki barsake barish
sazish tak kar jata hai
Jab waqt kare barbad
yaad tab hi aata hai daata
Dukh mein doobe bande ka
jud jata hai rab se nata
Sukh ke pul mein bhi na bhula
bula us ishwar ko khush hoke
Waqt ki bhi kya bisaat
ki uski marzi ko toke
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Mai Q Na Chahun
Itni aabadi me rahna aajadi se,
mai q na chahun.
Panchiyon si udkar badlon ko chuna
mai q na chahun.
Ladkon sa mai bhi har jagah ghumna,
Taron se alag chand ki tarah chamakana,
mai q na chahun.
Parwaton ka aarohan sapna bane mera,
Videshon me jakar padhna mai q na chahun.
In sare sawalon ke jawab mai q na chahun.
Janta hai aasman aur jamin
hamme nahi hai koi kami,
Phir q itni aabadi me rahna aajadi se,
Mai q na chahun.
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This is a poem describing the situation where a couple has separated & one of them is celebrating birthday alone hence missing other partner. Hope you like it.
सालगिरह
सालगिरह आती रही,
सालगिरह जाती रही,
पर ना खोल सका उन गिरहों को कोई
जो वक़्त ने बाँध रक्खी थीं,
ऐसा क्या ओर क्यों कर था
कि उनका सिरा भी ना मिला?
शायद वो सिरे कहीं दूर थे,
हमारी अपनी पहुँच से दूर,
बहुत दूर अनंत में गढ़े हुए,
या हमारे अपने हाथों की छाप में मढ़े हुए?
कौन जाने ?
जतन मैंने भी किये बेहिसाब,
चाहा तुमने भी बहुत,
पर शायद वक़्त ने सराहा ही नहीं,
वरना क्या वजह हो सकती थी
कि ज़िन्दगी भर साथ चलने के बावजूद
हम किनारों की तरह किनारों पर ही रहे ?
एक किनारा तेरा था,
एक किनारा मेरा भी,
शायद वक़्त ही ठीक से बाँधना भूल गया था
सप्तपदी की गिरह को,
या भूल गया था कोई ऐसी गिरह
जो दोनों किनारों को बाँध पाती,
या दोनों को ले जाकर
छोड़ देता किसी सागर में?
शायद मिल ही जाती वजह
हमें अगली सालगिरह के इंतज़ार की !
*****
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दीर्घ पथ पर एक अबला ,अपने क्षण को काट रही थी।
नेत्र बुझे उसके दोनों थे,शायद आँखोँ में प्यास रही थी।
नभ में अवतरित मेघ काले थे,मन मन में कुछ फुसफुसा रही थी।
सफर कटा अब कटता ही चला,मृत्यु भी तो समीप ना आ रही थी।
शायद दोपहर का पहर था वह,धूप नहीं वर्षा आ रही थी।
तीव्र गति से मेघों के झुण्ड,झटपट झटपट वर्षा रही थी।
वह तो पहले ही मर रही थी,वर्षा उसकी पीड़ा और बढ़ा रही थी।
तन अधीर पट विक्षीण थे,किसी तरह बिछौने से लिपटा रही थी।
दीर्घ राह से निकले सब थे,लोगों ने देखा पर ना पुकार रही थी।
वर्षा वर्षा वर्षा घनघोर घटा से,आँखों में प्यास पर ना प्यास रही थी।
मौत के रास्ते हुए कई हैं,शायद वही पथ तलाश रही थी।
मौत बन रही सौत उसे थी,जो उसे अति प्रताड़ित कर रही थी।
मन्नते माँगी उसने कितनीं,मृत्यु उसके पास आने से शर्मा रही थी।
शरीर जीर्ण पद घायल थे,श्वासों से शीत वायु बहा रही थी।
एक आध ही दृष्टि पड़ी थी,लगता था जैसे वह मर रही थी।
लगता था मुझको कुछ ऐसा,मृत्यु भी जनों की भाँति घृणा कर रही थी।
जीवित रखता है वह सबको ,वह मरती मरती जी रही थी।
सब की होती ख़्वाहिशें व्यापक,पर वह व्यापक मृत्यु बुला रही थी।
महसूस करूँ तो ऐसा लगता,मृत्यु तो फ़रमान ही ना सुना रही थी।
पर मृत्यु उसके पास कड़ी थी, वह मृत्यु के समीप मृत्यु उससे दूर जा रही थी।
दीर्घ पथ पर एक अबला , अपने क्षण को काट रही थी।
सर्वेश कुमार मारुत
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हे वीर जवानों! तुम सब कुछ हो,
फ़िर इस जग में और क्या है?
तुम से ही तो देश का अस्तित्त्व रहा,
तुम बिन इस जग में क्या नया है?
जियो चराचर तुम भारत के वीरों,
हम सब जन की उमर लग जाये।
शत-शत नमन करे हम सब तो,
प्यारे वीर जवान अमर हो जाये।
सर्वेश कुमार मारुत
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वृक्ष हमारे जीवन साथी,
इसके बिन घट जाये बाती।
शुद्ध हवा इससे ही आती,
सांसों में हमारे है जाती।
हे इंसानों! सुन लो-सुन लो,
वरना हो जायेगी बर्बादी।
सर्वेश कुमार मारुत
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धरती को हम न तड़पाये,
वृक्ष न काटे और न कटवाये।
चाहते हैं खुशिहाली अगर हम,
वृक्षों को हम खूब लगाये।
सर्वेश कुमार मारुत
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बसन्त का मौसम जब आता है,
साथ नई खुशियाँ लाता है।
देख इसे तब मानव ही क्या ?,
जड़ चेतन को भी लहलहाता है।
हुए थे पतझड़ से घायल ये,
नई जान सी लाता है।
खेत खलिहान हरित हो चले,
सारे जग को महकाता है।
फ़ूट चुकीं अब कलियाँ,दल पात्र,
तब धूप में जग चिलकाता है।
बसन्त का मौसम जब आता है,
साथ नई खुशियाँ लाता है।
मस्त पवन भी धीरे-धीरे,
तब सारे जग को सहलाता है।
उड़ी-उड़ी लो मधु मधुरस लेकर,
और तितली के मन को हर्षाता है।
सुगन्ध महकती धीमे-धीमे,
यह मन को हमारे मचलाता है।
शाखा तो अब बाल्य हो चलीं,
और पत्ता पत्ते से तब टकराता है।
यौवनित हो चले झाड़ पात वन,
श्रृंगरित हो शर्माता है।
अब आ गये देखो प्रेम पुजारी,
आँचल तब उनका रह न पाता है।
बसन्त का मौसम जब आता है,
साथ नई खुशियाँ लाता है।
दूषित वसन तब टूट चले थे,
बस ठूँठ बने लजियाता है।
फटे चिरे क्षीण थे ऐसे,
वह अम्बर या गेह पथ पर गिर जाता है।
कोई आये या कोई गुज़रे,
तब कोई दया दृष्टि या काट गिराता है।
पर महिमा है न्यारी उसकी,
देख परिस्थिति वसन्त भेज दिया जाता है,
मानव क्यों व्याकुल सा फ़िरता ,
आग लगी-लगी बस मन समझाता है।
सखी घूमती चली बावली,
प्रेम प्रताड़ित यह आग और बढ़ाता है।
बसन्त का मौसम जब आता है,
साथ नई खुशियाँ लाता है।
सर्वेश कुमार मारुत
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घनघोर घटा से बादल काले,
मस्त लगे और कितने प्यारे
देख के बादल काले काले।
कड़-कड़-कड़-कड़ बिजली चमके,
और घूमते कैसे यह मतवाले?
धुँआ-धुँआ सा छाया कैसे?
आग लगी हो मानो जैसे।
सूरज राजा छिपे अब डरे-डरे,
उसे देख खग भी टहले,
वे बच्चों को घोंसले में लगे बैठाने।
चेतक उन्हें देख अपने मुख को,
ऊपर करके लगा फैलाने।
मयूर भी नाच उठे देखो हैं,
देख के बादल काले-काले।
बरसने लगे ऐसे जैसे,
फूट पड़े हो अंगारे।
धुँध छा चला है ऐसे ,
डेरा डारे जैसे रात्रि रे।
मानव चित्त था व्याकुल,
वह थर थर लगा काँपने।
दन्तों को वह मीसे ऐसे,
और किट-किट कर लगा बजाने।
शीत ऋतु के बादल काले,
काले-काले और काले।
मानव तब ठण्डक से बचने को,
सब अग्नि लगे जलाने।
गगन मंडल काला था वैसे,
आग जली-जली जलने।
पर वह हुए और पीले काले।
टपक पड़े खण्डित छत छप्पर से,
देख निवासी लगा मलमलाने।
यहाँ देखते वहाँ देखते,
कोशिश करें स्वयं को बचाने।
ग्रीष्म ऋतु के बादल काले,
काले-काले और काले।
झड़े-झड़े कोहरे जैसे,
रिमझिम-रिमझिम-रिमझिम रे।
निकले तभी सतरंगी राजा,
पालकी में देखो सजे सजे।
मेढ़क तालाबो में झूमे,
तैरे मटके लगे टर्राने।
घोंघा-घोंघी टकराये आपस में,
खोले फाटक जोंके लगी बाहर आने।
मछली की आँखे भर आई सी,
लगी अपनी प्यास बुझाने।
केकड़ा बेचैन हुआ था बैठा,
काले-काले बादल देख लगा लंगड़ाने।
जल वनस्पति लगी सज सँवरने,
श्रृंगरित हो मन ही मन में,
लगी गीत खुशी के गाने।
भूमि भी अपने चुम्बन से,
हर बूँद को लगी चूमने।
तब चूमचाम के चूर हो चली,
धरा का हृदय लगा घबराने।
कठोरता से यह नम्र हो चली,
आकृतियाँ भाँति-भाँति की लगी सजाने।
वर्षा ऋतु के बादल काले ,
काले-काले और काले।
झपड़-झपड़ खूब छपाछप,
घनघोर घटा से वर्षा रे।
चौपायों के राज हो चले,
जो गया पोखरों में लगा नहाने।
हाँड़ माँस तब डूब चला रे,
तब गर्दन ऊपर लगा उठाने।
छाया हर तरफ़ वारि-वारि,
मानो आईना लगा दिखाने।
कहीं सरोज कुमुद या नलनी,
यह यौवन को और लगा बढ़ाने।
सजी हो नव दुल्हन बनी धरणी,
और तम्बू बने हो बादल काले।
बने बाराती नाच रहे हो,
मयूर,मत्स्य,मेंढ़क,फ़ूल व अन्य सारे।
और ढोल ढमाके बजा रहे,
काली बिजुरी के नगारे।
उनके ज़ोर नाच पड़े रे,
मेघ घटा से काले काले।
घनघोर घटा के बादल काले,
काले-काले और काले।
सर्वेश कुमार मारुत
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बसन्त का मौसम जब आता है,
साथ नई खुशियाँ लाता है।
देख इसे तब मानव ही क्या ,
जड़ चेतन को भी लहलहाता है।
हुए थे पतझड़ से घायल ये,
नई जान सी लाता है।
खेत खलिहान हरित हो चले,
सारे जग को महकाता है।
फ़ूट चुकीं अब कलियाँ,दल पात्र,
तब धूप में जग चिलकाता है।
बसन्त का मौसम जब आता है,
साथ नई खुशियाँ लाता है।
मस्त पवन भी धीरे-धीरे,
तब सारे जग को सहलाता है।
उड़ी-उड़ी लो मधु मधुरस लेकर,
और तितली के मन को हर्षाता है।
सुगन्ध महकती धीमे-धीमे,
यह मन को हमारे मचलाता है।
शाखा तो अब बाल्य हो चलीं,
और पत्ता पत्ते से तब टकराता है।
यौवनित हो चले झाड़ पात वन,
श्रृंगरित हो शर्माता है।
अब आ गये देखो प्रेम पुजारी,
आँचल तब उनका रह न पाता है।
बसन्त का मौसम जब आता है,
साथ नई खुशियाँ लाता है।
दूषित वसन तब टूट चले थे,
बस ठूँठ बने लजियाता है।
फटे चिरे क्षीण थे ऐसे,
वह अम्बर या गेह पथ पर गिर जाता है।
कोई आये या कोई गुज़रे,
तब कोई दया दृष्टि या काट गिराता है।
पर महिमा है न्यारी उसकी,
देख परिस्थिति वसन्त भेज दिया जाता है,
मानव क्यों व्याकुल सा फ़िरता ,
आग लगी-लगी बस मन समझाता है।
सखी घूमती चली बावली,
प्रेम प्रताड़ित यह आग और बढ़ाता है।
बसन्त का मौसम जब आता है,
साथ नई खुशियाँ लाता है।
सर्वेश कुमार मारुत
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क्षीण तन मन दुर्बल,
अब काँटा बन चुका शरीर ।
चली जा रही हो वह ऐसे,
चली हों लहरें जिसके तीर।
पग-पग पर करहाती ऐसे,
छत्ते बिन मधुमक्खी जैसे।
डगर छोटी चलती जा रही,
जैसे चला हो पहली बार बलवीर।
पथ-पथ पर वह देखे ऐसे,
बिन मछली वक हुआ अधीर।
हाथ फैलाए होंठ छिपाए वह चली जा रही,
जैसे खड़ा हो मृत्य शरीर।
हुआ प्रतीत तो होंठ हिले थे,
पर दिया नहीं उन्होंने कुछ भी।
क्या करती बस बढ़ती ही
चली?,
चली नदी हो जैसे सागर के नीर।
पैरों में यह जख़्म ये ऐसा,
जैसे गड्ढों की तस्वीर।
चली जा रही चली जा
रही,
पर आँखों में थे उसके नीर।
क्षीण तन मन दुर्बल,
अब काँटा बन चुका शरीर ।
चली जा रही हो वह ऐसे,
चली हों लहरें जिसके तीर।
तन पर पट फटे पड़ें हैं ,
जैसे पतझड़ की तासीर।
हाथ उठाए जैसे उसने ,
पर महाशय बोले दो मुझको ढील।
उसके साथ एक छोटा बालक,
खिंचता जा रहा पकड़े उसकी
उँगली।
वह तो अम्मा अम्मा बोलता जा रहा,
लग रहा था मानो टेढ़ी लकीर।
एक हाथ से माँ की पकड़ी उँगली,
तथा दूसरा हाथ था प्रकीर्ण।
लोगो ने तभी देखा उधर से,
और कर ली आँखें बड़ी-बड़ी।
वह बोला बाबू दे दो कुछ,
पर कह दिया उन्होंने चल आगे बढ़ ले।
अब क्या करते व्ह बढ़ते ही चले?,
और कहा रहो जीते प्यारे वीर।
उसने मन में इतना सोचा,
कुछ लोगों ने चोला पहना हमारे जैसा ही।
इसकी खातिर लोगों ने हमें,
झूठा समझ लिया पहले से ही।
पर मिला अब नहीं-मिला अब नहीं,
चाहें हम चले जाएँ लाखों मील।
पर तन में इतनी क्षमता ही नहीं,
और पैर पड़े हैं बिल्कुल चीर।
क्षीण तन मन दुर्बल ,
अब काँटा बन चुका शरीर।
चली जा रही चली जा
रही ,
पड़ चुकी हैं जिनकी साँसें क्षीण।
सर्वेश कुमार मारुत
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मछली- मछली इधर तो आ,
आकर अपना नाम बता।
डर मत मछली आ भी जा,
और आकर के खाना खा जा।
मछली-मछली मान भी जा,
हठ मत कर और न शर्मा।
तुझको हाथ लगाऊँ मैं तो,
मुझको आये बड़ा मजा।
मछली- मछली एक बात बता,
पानी से तेरा साथ बड़ा।
और बिन पानी तेरा होगा क्या?
मैंने अब यह लिया है मान,
पानी ही तेरा जीवन दान।
क्या करूँ मैं और बखान?
बिन पानी तेरे निकले प्रान।
सर्वेश कुमार मारुत
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हर कोई वेग़ाना है,
सभी का अपना अपना फ़साना है।
उलझते जा रहे फ़ासलों क्यों?
ये वन्दा कुछ दीवाना है।
ज़िन्दगी जीना चाहते हैं,
ख़्वाहिशों का आशियां है।
रुक चली ज़िन्दगी उलझती राहों में,
पर हौंसलों का मुकां है।
मासूमियत चेहरे पर है कितनीं?
पर कहाँ चेहरे पर निशां है।
जिसने तोड़े हैं सीने से पत्थर,
न पहलवान पर वह इंसा है।
पर जंग जीती ज़िन्दगी में जिसने,
वो इंसान ही तो महान हैं।
नहीं पोछा करते पसीने को अपने,
क्योंकि पसीना ही उनकी जान है।
ख़िलते आये हैं फ़ूल ऐसे ही में आज तक,
ये सवक क़ाबिले वेमिशां है।
सर्वेश कुमार मारुत
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चल-चला-चल, चल-चला-चल, तू चलता चल।
ज़ीवन ही तो कठिनाई है, पर बढ़ता चल।
चलना है तो चलना है ,तुझे हर पल-पल।
छोटा जीवन करम नेक ,तो करता चल।
चल-चला-चल, चल-चला-चल, तू चलता चल।
कठिन रास्ते हैं ,पर कठिनाई से मत तू हिल।
पड़े रास्ते कई ,तो अपनी मति-मति चल।
कई रास्ते में से कोई तू एक पकड़ ,पर चलता चल।
एक सूध तू बस पकड़ ले, निकलेगा तेरा हल।
चल-चला-चल, चल-चला-चल, तू चलता चल।
इस पथ पर कुछ नेक मिले, तो तू मिलकर चल।
कुछ मिलेंगे भ्रष्ट, सुध दे और क्या बढ़ता चल?
संकट पैदा करें, पर तू इनसे मत खल।
लोग जले जलने दे, पर तू अनदेखा कर चल।
चल-चला-चल, चल-चला-चल, तू चलता चल।
तू चलेगा देश चलेगा, निकल सकता है हल।
उन्नति ,समृद्धि तुम्हीं से, और इसे विकसित करता चल।
तुम देश से – देश तुम से , तू और सुरक्षित करता चल।
बूँद -बूँद से घड़ा भरा है , और इसे तू भरता चल।
चल-चला-चल, चल-चला-चल, तू चलता चल।
सर्वेश कुमार मारुत
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कविता प्रकाशन के लिए धन्यवाद;! मैडम
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ओ! नन्हे बादल के टुकड़े,
ज़रा एक झलक दिखला जाना।
देखो गर्मी पड़ी भयानक,
आकर इसको टहला जाना।
अम्बर बना है आग की थाली,
अपने दोस्तों के साथ तुम मिलकर।
जैसा हो और जितनी जल्दी ,
इसको आकर बहला जाना।
जीभ निकाली है सूरज ने,
देखो हम सब को खाने को।
फटी जा रही है यह धरती,
और हॉफ रहा है यह जग सारा।
ओ! नन्हें बादल के टुकड़े,
बस आकर हमें बचा जाना।
तेरा इस अम्बर से कुछ तो,
कुछ ना कुछ याराना होगा।
आजा-आजा, आज आजा;
आकर इसे समझा बुझा जाना।
माना तू छोटा और नन्हा है,
पर रुक- रुक कर थोड़ा-थोड़ा।
झटपट- झटपट तू आकर हम पर,
थोड़ी हम पर छांव लगा जाना।
ओ! नन्हें बादल के टुकड़े,
थोड़ी दयादृष्टि बरसा जाना।
तू जाने बस तू जाने,
और कोई क्या अब जाने?
तेरा काम कुछ छाया देना,
और तेरा कर्म है बरसाना।
ओ! नन्हें बादल के टुकड़े,
तुम हमारे मन को पढ़ जाना।
वृक्ष भी देखो लटक पड़े हैं,
और फ़ूट पड़ी उनसे ज्वाला।
जीव- जन्तु भी तड़प उठे अब,
यहाँ भागा बस वहाँ भागा।
ओ! नन्हे बादल के टुकड़े,
तू थोड़ी करुणा दिखला जाना।
बचा नहीं अब शेष जरा भी,
चाहे तालाब या हो कुँआ।
मरे-मरे हाय मरे- मरे सब,
और क्षीण हो चले हैं नैना।
ओ!नन्हें बादल के टुकड़े,
जरा आँखों को तो भर जाना।
ओ! नन्हें बादल के टुकड़े,
तू हम पर आकर रो जाना।
सर्वेश कुमार मारुत
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बादल करने लगे हैं शोर,
मेघ देख नाचे हैं मोर।
जंगल में अब मची है दौड़,
घमासान और लगी है हौड़।
बिजली चमकी ताबड़ तोड़,
अंधा- धुंधी नाचे हैं ठौर।
जंगल में मंगल की हौड़,
पैरों में पानी की पौड़।
पंखों में उनके हिलकोर,
आँखों में पानी की छौर।
व्यथा कथा का है यह दौर,
बादलों में हो उनकी डोर।
जिन्हें नचाएं चारों ओर,
तीव्र गति से नाचें हैं मोर।
सर्वेश कुमार मारुत
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बादल करने लगे हैं शोर,
मेघ देख नाचे हैं मोर।
जंगल में अब मची है दौड़,
घमासान और लगी है हौड़।
बिजली चमकी ताबड़ तोड़,
अंधा- धुंधी नाचे हैं ठौर।
जंगल में मंगल की हौड़,
पैरों में पानी की पौड़।
पंखों में उनके हिलकोर,
आँखों में पानी की छौर।
व्यथा कथा का है यह दौर,
बादलों में हो उनकी डोर।
जिन्हें नचाएं चारों ओर,
तीव्र गति से नाचें हैं मोर।
सर्वेश कुमार मारुत
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ज़िन्दगी जब भी अपना पता देती है,
ग़म कितने हैं यह बता देती है?
सह भी लेते हैं लोग अक्सर इसको,
फिर भी अक्सर रुला देती है।
फ़िक्र जब बढ़ जाती हैं खुशियों को लेकर,
तो हमारे जिस्म को काँटा बना देती है।
वक्त गुजरता चला जाता है इस ज़िन्दगी में,
कुछ मर जाते और कुछ बूढ़े हो जाते हैं
छोटे और बड़ो पर भी अपना जादू चला जाती है!
सर्वेश कुमार मारुत
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जिंदगी की जंग जीत जाने की हिम्मत तो है
रोजगार ना सही पर कमाने की हिम्मत तो है
वक्त बेवक्त मिले फिर भी कोई गम नही
सूखी रोटी ही सही खाने की हिम्मत तो है
महलों में रहने की “राहुल” तेरी औकात नही पर
तिनका-तिनका जोड़, घर बनाने की हिम्मत तो है
डूब गयी पतवारें लेकिन हौसला अभी बाकि है
कश्ती को साहिल तक पहुँचाने की हिम्मत तो है
काट डालो जुबान चाहें शायर की आज तुम
हकीकत को कलम से बताने की हिम्मत तो है
सत्ता के गलियारों में भ्रष्ट सरकारों के खिलाफ
अकेली आवाज ही सही उठाने की हिम्मत तो है
नाम- राहुल रेड
पता-फर्रुखाबाद उत्तर प्रदेश
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अगर एक साथ कई कविताये कॉमेंट बॉक्स में डालें तो सारी रचनाये पब्लिश होगी या उनमे से कोई एक
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सिर्फ सपने हम सजाते नहीं, सच करने का जूनून है,
मंज़िल तक हमें थकना नहीं,
मंज़िल कहा अब दूर है,
है हौशला बुलंद की हमको जीत कर है जाना,
कुछ भी हो जाए हमे नंबर वन है आना,
सिर्फ बाते हम करते नहीं,
आगे बढ़ने का जोश है,
भूले नहीं है ,हम सपनो को,
हा, हमको अभी भी होश है,
क्यों की,
हम तो वो है जो,
सिर्फ सपने हम सजाते नहीं, सच करने का जूनून है,
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एक सोच दुनिया बदल सकती है,
एक सोच मन की भक्ति है,
एक सोच दुनिया बदल सकती है,
जब जिंदगी अपनी बाजी चलती है,
जब उलझने जमी पर पाँव रखती है,
विचार इंसान का बदलाव लाने को,
एक सोच दुनिया बदल सकती है,
स्वच्छ और स्वस्थ्य का संकल्प,
जेसे सोने सी तकती है,
जहा दिमाग की शक्ति बिकती है,
जन जन जुड़ जाता है जहा,
एक सोच दुनिया बदल सकती है,
“मन” लिखता जायेगा,
दुनिया पढ़ती जायेगी,
हौशला बढ़ता जायेगा,
दुनिया बदल जायेगी,
ऐ इंसान चल वक़्त के साथ, तेरी सोच दुनिया बदल सकती है,
हा,
एक सोच दुनिया बदल सकती है
🙏🏻एक असाधारण प्रयास कविता की और….
“मन”
मनोज प्रजापति
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प्यारी कोयल-प्यारी कोयल,
तू इतना प्यारा कैसे गाती है?
तू क्या खाती और क्या पीती?,
तू मुझको क्यों नहीं बतलाती है?
कू-कू ,कू-कू तेरी बोली,
मन में मेरे घर कर जाती है।
तू अपना तो राज़ बता,
फ़िर क्यों नहीं हमराज़ बनाती है?
प्रभात हुआ सूरज निकला,
और तू मधुर गति से गाती है।
तभी पड़े कानों में मेरे ध्वनि,
आकर मुझको जगाती है।
प्यारी कोयल-प्यारी कोयल,
तू इतना प्यार क्यों लुटाती है?
जग ऐसा और बड़े हैं बोल,
पर घमण्ड नहीं तू कर पाती है।
तू सभी पक्षियों से है अच्छी,
सब के मन को बहुत लुभाती है।
कौआ हुआ दीवाना तेरा,
तुझे देख के ऐसे लड़खाता है।
कॉव-कॉव की ध्वनि उसकी,
तेरे सामने फ़ीकी पड़ जाती है।
प्यारी कोयल-प्यारी कोयल,
तू ऐसा क्या-क्या खाती है?
मुझे बता देगी तो मैं भी,
तेरी तरह मीठा-मीठा बोलूंगा।
कुछ तो मैं भी घोलूँगा,
तो अन्यों को भी तो दूँगा।
जग में तू न्यारी कितनी है,
पर तेरी बोली सारे जग में प्यारी है।
सर्वेश कुमार मारुत
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फार्म बाक्स मे कविता सब्मिट करने के बाद इनका प्रकाशन कब होता है,और इसे किस लिँक पर पढा जा सकता है।
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हमारी टीम हर कविता को जांचती है एवं प्रकाशूट होने पर कवी को ईमेल द्वारा सूचित किया जाता है |
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My poem ‘bharat ke yuva’
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Kavita published hone me kite din lagte h
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2 din..
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*एक खत ( सैनिक का) माँ के नाम*
माफ करना माँ मै तुझे अलविदा ना कह सका,
तेरे आँचल में पल दो पल न रह सका
रोज याद तेरी आती थी,
छू कर मेरी रूह को गद गद कर जाती थी,
पर पता है माँ ,
इस मिट्टी की नरमी तेरे होने का हर पल मुझे आभास कराती थी
प्यार से चुम कर तेरी ही तरह सहलाती थी
रोज रात बाहे फैलाती थी
कण कण अपने छनकाकर लोरी सुनाती थी
फिर क्या!! रोज़ रात तुझसे मुलाकात हो जाती थी
जब सपनो में तू मेरे आकर मुस्काती थी
पर माँ,
तेरी मेरी मुलाकात का समा सपनो तक ही सीमित रह गया
तेरी रूह का चिराग , खुद अँधेरे में बह गया।
दहलीज पर बैठ कर ,तू मेरी राह तकती रही
आढ़ में यादो की बैठ ,तू बिलखती रही
पर लुटा कर अपना सब कुछ इस वतन पर, मैं तुझे कुछ ना दे सका
माफ करना माँ मैं तुझे अलविदा भी न कह सका ।।
– अभिलाषा सिंघल
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मेरी आंखों को वो माने लगी
जानकर वो गली में मेरे आने लगी।
इक बार मिले दो बार मिले
अब तो अक्सर मिलने आने लगी।
प्यार के राहों पहला कदम था मेरा
ढाई आखर का अर्थ वो बताने लगी
प्यार के सफर में मजा यूं आने लगा
ये दुनिया खुबसूरत नजर आने लगी।
न रातों में नींद न दिन को चैन था
अब तो सपनों में भी आने लगी।
संग जियेगे संग मरेंगे “नील”
सात जन्मों की कसमें खिलाने लगी सुनील पाण्डेय”नील”
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This is a nice platform for the writer
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Dosti
Sab log sath chod de toh,
Tum mere hath tham lena.
Agar mai khush hu toh,
Mere khushi me sahmil ho lena.
Agar me udas hu toh,
Jokes suna kar hasa dena.
Agar me galat hu toh, dat dena.
Man ne than li hai tumse marte dum tak sath nibhane kisi, bass sath kabhi chod mat dena.
Muzhe pyar jatana nahi ata, toh mere gali ko hi mera pyar samaz lena.
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Sab log sath chod de toh,
Tum mere hath tham lena.
Agar mai khush hu toh,
Mere khushi me sahmil ho lena.
Agar me udas hu toh,
Jokes suna kar hasa dena.
Agar me galat hu toh, dat dena.
Man ne than li hai tumse marte dum tak sath nibhane kisi, bass sath kabhi chod mat dena.
Muzhe pyar jatana nahi ata, toh mere gali ko hi mera pyar samaz lena.
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