
मौन और मुस्कान
मौन में अनंत शांति समायी है,
मुस्कान उस शांति की परछाई है,
गहरा रिश्ता है मौन का मुस्कान से
मैं सुनाता हूं सुनो ध्यान से,
मौन महल है तो मुस्कान द्वार है,
यहां पहुचने के रास्ते हज़ार हैं,
मौन भाव में स्थित होती है जब दृष्टि
तब मुस्कुराती नज़र आती है सम्पूर्ण सृष्टि
यहां हर कोई विचारों और वाक्यों में उलझा है,
मौन को जाना जिसने बस वही सुलझा है,
मौन कारण है तो मुस्कान प्रभाव है
वास्तव में यही तो हमारा स्वभाव है,
सम्पूर्ण सृष्टि मौन भाव में ही विचरती है
मुस्कुराती है अपना कार्य बखूबी करती है,
मुस्कान मौन से ही दिव्यता पाती है,
तभी तो ये मुख की शोभा बढा पाती है,
जब मन पा जाता है मौन अवस्था
तब समझ में आने लगती है सम्पूर्ण सृष्टि व्यवस्था,
मन मौन होने पर मनुष्य तब अचंभित होता है
मुस्कान बन तब उसमें मौन ही प्रतिबिंबित होता है…
-नवीन कौशिक
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