
हम-आप नागरिक हैं (कविता का शीर्षक)
आओ अपना संविधानिक फ़र्ज़ निभाते हैं,
कर्तव्यों का हमें नहीं पता, पर हम आम नागरिक हैं ,
हमें भला कौन रोकेगा ?
सरकारे हैं ना चलो उन पर दोष लगाते हैं ।
आओ आज अपना संविधानिक फर्ज निभाते हैं।।
सुनो, पुलिस जो आए तो उसे भी ना छोड़ना ,
क्योंकि हमारा काम है बस सरकारों को दोष देना ,
दिल्ली ही तो है, फिर बस जायगी पर अगर शान्ति रही तो देश मे मानवता ना फैल जायगी।।
पत्थर मे पथरबाज़ी में भला कश्मीर ही क्यों आगे रहे ?
हम हैं ना, चलो किसी की दुकान तो किसी का घर जलाते है ।
चलो आज अपना फ़र्ज़ निभाते हैं,
चलो आज फिर से सरकारों को दोषी ठहराते हैं।।
हममें से कुछ मुसलमान होंगे, कुछ हिन्दू होंगे ,
कुछ पक्ष मे होंगे, कुछ विपशी होंगे,
अरे ये सी ऐ ऐ क्या है, तुम्हें पता है क्या ?
पर चलो बहुत दिन गये शान्ति के, अब ये जो बिंदु मिला है
इसी बहाने कुछ उपद्रव मचाते हैं ,
चलो सरकारों को दोषी ठहराते है,
हम आम नागरिक है, चलो ज़रा अपना फ़र्ज़ निभाते हैं।।
सुना है महमानों को बुलाया जा रहा है देश में,
चलो उनको तो अपने संस्कार दिखाते हैं ।
अभी तो मरने वालों की संख्या बत्तीस हुई है
चलो पचास के पार पहुँचाते हैं ,
किसी का बाप छिने, किसी का सुहाग हमें भला क्या लेना
हम देश प्रेमी है गलत के खिलाफ आवाज़ ही तो उठाते हैं ।
चलो आज अपना फ़र्ज़ निभाते हैं,
हम तो आम नागरिक हैं, हमें कौन रोकेगा,
हम ही तो सरकार बनाते हैं ।
आओ आज उन्ही सरकारों को दोषी ठहराते हैं।।
- आकांक्षा देशवाल
शानदार👍
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Very good Aakanksha.
couldn’t stop myself from sharing it.
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Thank you it means a lot to me
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Bahut khoob
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