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Hindi Poem on Woman – नारी

तू ही धरा, तू सर्वथा।
तू बेटी है ,तू ही आस्था।
तू नारी है , मन की व्यथा।
तू परंपरा ,तू ही प्रथा।

तुझसे ही तेरे तपस से ही रहता सदा यहां अमन।
तेरे ही प्रेमाश्रुओं की शक्ति करती वसु को चमन।
तेरे सत्व की कथाओं को ,करते यहाँ सब नमन।
फिर क्यों यहाँ ,रहने देती है सदा मैला तेरा दामन।

तू माँ है,तू देवी, तू ही जगत अवतारी है।
मगर फिर भी क्यों तू वसुधा की दुखियारी है।
तेरे अमृत की बूंद से आते यहां जीवन वरदान हैं।
तेरे अश्रु की बूंद से ही यहाँ सागर में उफान हैं।

तू सीमा है चैतन्य की ,जीवन की सहनशक्ति है।
ना लगे तो राजगद्दी है और लग जाए तो भक्ति है।
तू वंदना,तू साधना, तू शास्त्रों का सार है।
तू चेतना,तू सभ्यता, तू वेदों का आधार है।

तू लहर है सागर की ,तू उड़ती मीठी पवन है।
तू कोष है खुशियों का ,इच्छाओं का शमन है।
तुझसे ही ये ब्रह्मांड है और तुझसे ही सृष्टि है।
तुझसे ही जीवन और तुझसे ही यहाँ वृष्टि है।

उठ खड़ी हो पूर्णशक्ति से।
फिर रोशन कर दे ये जहां।

जा प्राप्त कर ले अपने अधूरे स्वप्न को।
आ सुकाल में बदल दे इस अकाल को।
तू ही तो भंडार समस्त शक्तियों का।
प्राणी देह में भी संचार है तेरे लहू का।

-अर्चना

Tu hi dhara , tu hi sarvtha
Tu beti hai tu hi aastha
Tu nari hai man ki vytha
Tu parmpara, tu hi partha

Tujhse hi tere tapas se hi rehta sada yhan aman
Tere hi premashron ki sakti karti basu ko chaman
Tere satav ki kathaon ko yhan sab naman
Fir kyon yahan rahne deti hai sada meila tera daman

Tu maa hai tu devi,tu hi jagat awtari hai
Magar fir bhi kyon tu vasudha ki dukhiyarihai
Tere amrit ki bund se aate yhan jivan vardaan hai
Tere aashuon ki boond se hi yha sagar mein ufaan hai

Tu seema hai chaitany ki Shehnshakti hai
Na lage to rajgaddi hai aur lag jaye to bhakti hai
Tu vandana, tu sadhna, tu shastron ka saar hai
Tu chetna, tu shabhyata, tu vedon ka aadhar hai

Tu lehar hai sagar ki tu udati mithi pawan hai
Tu kosh hai khushiyon ka ichchaon ka sham hai
Tujhse hi ye brahmand hai aur tujhse hi shrishti hai
Tujhse hi jivan aur tujhse hi yhan vristhi hai

Uth khadi ho puranshkati se
Fir roshan kar de ye jhan

Ja prapt karle apne adhure swapan ko
Aa sukal me badal de es akaal ko
Tu hi to bhandar samast shaktiyoon ka
Prani deh mein bhi sanchaar hai tere lahu ka

-Archana

 

Hindi Poem on Woman Empowerment – नारी हूँ मैं

नारी हूँ मैं।

ममता की छांव जनम देने वाली जननी हूँ मैं।
दुःख -सुख में हमेशा साथ देने वाली भार्या हूँ मैं।
माँ -बाप की आन बान सान सम्मान हूँ मैं।
हाँ एक बेटी …पापा की प्यारी हूँ मैं।
भाई की ताकत …अच्छी दोस्त हूँ मैं।
करती पुर्ण पुरुष को ऐसी स्त्री हूँ मैं।
नारी हूँ मैं।।

फिर क्यों दुनिया मे नही लायी जाती हूँ मैं?
जन्म कहाँ कोख में मारी जाती हूँ मैं।
नर -नारी तेरी कुदरत फिर क्यों उपेक्षित हूँ मैं।
जवानी की दो सीढ़ियाँ चढ़ी नहीं कि रोकी जाती हूँ मैं।
बेटी, बहन, माँ, बच्ची, बूढ़ी और पत्नी भी हूँ मैं।
फिर क्यों हर स्वरूप में बालात्कारी से कुचली जातीहूँ मैं ?
नारी हूँ मैं।।

सुनो ,नारी हूँ ,अबला नहीं ,दुर्गा स्वरूप हूँ मैं।
रोना -धोना छोड़ो कहो नहीं ,सम्मानित हूँ मैं।
दिखा दो ताकत से अपनी कि अभिमान हूँ मैं।
अब रक्त से भी अबला नहीं सबला हूँ मैं।
कलियुग में भी महिषासुर पर चंडी हूँ मैं।
नारी हूँ मैं!!

-अंजना

Nari hoon main
Mamhta ki chhav janam dene wali janni hoon main
Sukh-dukh mein hamesha sath dene wali baharya main
Maa-baap ki aan baan saan smaan hoon main
Haan ek beti mere papa ki pyari hu main
Bhai ki takkat achi dost hoon main
Karti puran purash ko esi satri hoon main
Nari hoon main

Fir kyon duniya main nahi lai jati hoon main
Janam kha kokh mein mari jati hoon main
Nar-nari teri kudart fir kyon upekshit hoon main
Jawani ki do seedhiyan chadhi nai ki roki jati hoon main
Beti, behen, maa, bachi, budhi aur patni bhi hoon main
Fir kyo har savroop mein balatkari se kuchli jati hoon main
Nari hoon main

Suno nari hoon abla nahi durga savroop hoon main
Rona dhona chodo kaho nahi ki smaan hoon main
Dikha do takat se apne ki abhimaan hoon main
Ab raqa se bhi abla nahi sabla hoon main
Kalyug mein bhi Mahishasur par Chandi hoon main
Nari hoon main

– Anjana

Hindi Poem for Women – नारी शक्ति

 

नारी सिर्फ उपभोग की वस्तु है
ऐसे विचार कभी क़बूल मत करना
नारी को अबला समझने की  कभी भूल मत करना
नारी अम्बर है कोई शीशे की दिवार नहीं
नारी खुद में शक्ति है किसी की मोहताज़ नहीं
संघर्षो से टकराना उसको भी आता है
हर मुश्क़िल  से गुजर जाना उसको भी आता है
प्यार से देखोगें तो बहार नज़र आयेगी
नफरत से तोड़ोगे दीवार नज़र आयेगी

– साहिन मनसोरी

Nari sirf upbhog ki vastu hai
Aise vichar kabhi qabol mt karna
Nari ko abla samajhane ki kabhi bhul mat karna
Nari ambar hai koi shise ki divar nahi
Nari khud mein Shakti Hai kisi ki mauhtaaz nahi
Sangharshon se takrana ushko bhi aata Hai
Har mushkil se gujar Jana ushko bhi aata hai
Pyaar se dekhoge to bahaar nazar aayegi
Nafrat se todoge to deewar nazar aayegi

-Sahin mansory

Hindi Poem for Woman- नारी

तोड़ के पिंजरा
जाने कब उड़ जाऊँगी मैं
लाख बिछा दो बंदिशे
फिर भी आसमान मैं जगह बनाऊंगी मैं
हाँ गर्व है मुझे मैं नारी हूँ
भले ही रूढ़िवादी जंजीरों सेबांधे है दुनिया ने पैर मेरे
फिर भी इसे तोड़ जाऊँगी
मैं किसी से कम नहीं सारी दुनिया को दिखाऊंगी
जो हालत से हारे ऐसी नहीं मैं लाचारी हूँ
हाँ गर्व है मुझे मैं नारी हूँ

-सोनी कुमारी

Tod ke pinjra
Jane kab ur jaungi mai,
Lakhh bichha do bandise
Phir bhi aasman mai jagah banaungi mai,
Ha garv hai mujhe mai nari hu.
Bhale Hi rudhiwadi janjiro se bandhe hai duniya ne pair mere,
Phir bhi ise tor jaungi
Mai kisi se kam nahi sari duniya ko dikhhaungi,
Jo halat se hare aisi nahi mai lachari hu,
Mai to solo pe bhi chalkar apni rah bana lu mai aisi nari hu.
Mera apna astitva hai nahi mai lachari hu
Ha garv hai mujhe mai nari hu.

-Soni Kumari

Hindi Poem for Women – समानता

अंदर से रोती फिर भी बाहर से हँसती है
बार-बार जूड़े से बिखरे बालों को कसती है
शादी होती है उसकी या वो बिक जाती है
शौक,सहेली,आजादी मायके में छुट जाती है
फटी हुई एड़ियों को साड़ी से ढँकती है
खुद से ज्यादा वो दुसरो का ख्याल रखती है
सब उस पर अधिकार जमाते वो सबसे डरती है
क्योंकि बिकी हुई औरत बगावत नही करती है।

शादी हकोर लड़की जब ससुराल में जाती है
भूलकर वो मायका घर अपना बसाती है
घर आँगन खुशियो से भरते जब वो घर में आती है
सबको खाना खिलाकर फिर खुद खाती है
जो घर संभाले तो सबकी जिंदगी सम्भल जाती है
लड़की शादी के बाद कितनी बदल जाती है।
गले में गुलामी का मंगलसूत्र लटक जाता है
सिर से उसका पल्लू गिरे तो सबको खटक जाता है
अक्सर वो ससुराल की बदहाली में सड़ती है
क्योंकि बिकी हुई औरत बगावत नही करती है।

आखिर क्यों बिक जाती, औरत इस समाज में?
क्यों डर-डर के बोलती, गुलामी की आवाज में?
गुलामी में जागती हैं, गुलामी में सोती हैं
दहेज़ की वजह से हत्याएँ जिनकी होती हैं
जीना उसका चार दीवारो में उसी में वो मरती है
क्योंकि बिकी हुई औरत बगावत नही करती है।

जिस दिन सीख जायेगी वो हक़ की आवाज उठाना
उस दिन मिल जायेगा उसे सपनो का ठिकाना
खुद बदलो समाज बदलेगा वो दिन भी आएगा
जब पूरा ससुराल तुम्हारे साथ बैठकर खाना खायेगा
लेकिन आजादी का मतलब भी तुम भूल मत जाना
आजादी समानता है ना की शासन चलाना
असमानता के चुंगल में नारी जो फँस जाती है
तानाशाही का शासन वो घर में चलाती है
समानता से खाओ समानता से पियो
समानता के रहो समानता से जियो
असमानता वाले घरों की, एक ही पहचान होती है
या तो पुरुष प्रधान होता या महिला प्रधान होती है
रूढ़िवादी घर की नारी आज भी गुलाम है
दिन भर मशीन की तरह पड़ता उन पे काम है
दुःखों के पहाड़ से वो झरने की तरह झरती है
क्योंकि बिकी हुई औरत बगावत नही करती है।

-राहुल रेड