आज फिर मैंने अख़बार पढ़ी
थोड़ी सी तकलीफ थोड़ी उदासी बढ़ी
आज फिर मैंने अख़बार पढ़ी
कहीं एक नन्हा इनक्यूबेटर में जल कर स्वाहा हुआ
कहीं स्कूल कहीं दुकान में बच्चियों संग अनचाहा हुआ
किसी बहु ने अपनी सास की ले ली जान
किसी आतंकवादी के हाथ वीर हुआ कुर्बान
मैंने खुद से आखिर किया अंतिम इकरार
इतने दिन बिना अख़बार कितने थे मज़ेदार
अब मैं फिर सोचती हूँ खड़ी खड़ी
अफ़सोस मैंने आज क्यों अखबार पढ़ी
-अनुष्का सूरी
(यह कविता दिनांक २ ८ सितम्बर, २०१७ की अखबार को पढ़कर रची गयी है)
Nyc poetry … iss tym crime jis trah badha hua hai newspaper padne ka man nhi karta …
Ji bilkul
Bhut khuub rachi gayi hai
Thank you
Bahut khub 👍👏👏👏
Dhanyawad 🙏
Nice Rythm…….😇
Thank you