Hindi poem on farmer debt
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Hindi Poem on Farmer – एक किसान
दो दिनों से कुछ खाए बिना , वो भूखा सोया था ।।
फसलो को अपनी देख कर , वो खूब रोया था ।।१
बरसात गुजर तो गई , पर कुए भी भर न पाई ।।
कर्ज की पहली ही किस्त थी ,
जो दो सालो बढ़ती आई ।।२
घर था गिरवी रखा उसने , पर ब्याज इतना बढ़ गया था ।।
छोड़ कर चल दिए थे अपने , वो अकेला पड़ गया था ।।३
घर नीलाम होने की डर से , वो बहुत डर गया था ।।
जिन्दा रहने की चाह थी उसकि,पर वो टूट कर बिखर गया था ।।४
रहमत की भीख मांगी थी उसने,
पर वक्त बहुत हो चला था ।।
दो दीन बीद घर नीलाम होना था, वो एक दीन पहले छोड़ गया था ।।५
पत्नी माइके से लोटी नहीं थी , बेटे को साथ लिए थी वो ।।
मुश्किल वक्त में साथ न देकर , पति को छोड़े हुए थी वो ।।६
वो अकेला गम का बोझ लिए था ,
पर अब तो कंधे भी टूट गए थे ।।
रब रूठा था जायज था , पर तब तो अपने रूठ गए थे ।।७
खाकर जहर भी जब न मोत आई , वो फासीं लगाकर लटक गया ।।
दूसरे दीन अख़बार ने छपा ,
एक और किसान सटक गया ।।८
पर तब इंसानियत शर्मसार हो जाती हे, जब हुकूमत ये कहती हे ।।
पारिवारिक कलह के चलते , ऐसी घटनाए होती रहती हे ।।९
पर कर्ज माफ़ फिर भी न होता ,
घर फिर भी नीलाम होता हे ।।
ये किसानो का नसीब भी इतना ,
कयूँ बेहरहम होता हे ।।१०
~ अंशुमान शर्मा ‘सिद्धप’