Hindi Poem on Mother -Janani

जननी

महफूज़ किनारा दुनिया का,

जननी का आँचल होता है।

चाहे चाँद खरीदो अंबर का,

चाहे पूरी दुनिया अपना लो तुम।

महफूज़ किनारा दुनिया का,

जननी का आँँगन होता है।

चाहे जितनी शौक बुझा लो,

तरह तरह की चीजों से चाहे तुम सोओ हरपल,

नोटों से भरे हुए बिस्तर पर,

महफूज किनारा दुनिया का,

जननी का दामन होता है।

हर रिश्ते से हटके,

कितना पावन ये दिल का बंधन होता है….

मैं तेरी परछाईं हूँ,

तेरे ही कारण आई हूँँ,

कोख में रखा,

खून से सींचा हाँ माँ!!

मैं तेरी ही जाई हूँ मेरी प्यारी माँ

-शिवांगी सिंह

एक बेटी की ओर से अपनी माँ के प्रति आभार भरी कविता

Janani

Mahfooz kinaara duniya ka,

janani ka aanchal hota hai.

Chahe chand kharido ambar ka,

Chahe puri duniya apna lo tum,

Chahe shauk bujha lo tum

apna Tarah tarah ki cheejon se,

Chahe tum sowo har pal

Noton se bhare huye bistar par

Mahfooj kinara duniya ka,

Janani ka daman hota hai.

Har rishtey se hatke,

Kitna pawan ye dil ka bandhan hota hai…..

Main teri parchhayi hun,

Tere hi karan aayi hun,

Kokh mein rakha,

Khoon se seencha, Haan maa!

Main teri hi jayi hun.

Love you mom

-Shivangi Singh

Hindi Poem on Covid Pandemic-कोरोना महामारी पर कविता

बेबस धरा

उमंग सी किलकती धरा,

हरी ओढ़नी ओढे भू-धरा।

मायूस हो गई है क्यूँ ऐ बता,

क्या खता हमारी अक्षम्य सी।

है प्रण अब रक्षा हम करे,

अपनी धरा के खजानों की।

दे रही है जो हमें जीवनदान,

हम क्यूँ न सहेजे ऐसा मूल्यवान।

होते इस संकट से पार,

जिसके जन है सबसे बङे गुनहगार।

आज न होती बेबस धरा,

गर हम न दोहरे जन्नत सी धरा।

है प्राण वायु के लाले पङे,

धरती ने क्या हमें कम दिए।

पर न समझ हम रह गए,

जो अब सबब दे रही धरा।

है चीत्कार फैला यहाँ,

श्मशान भी पटे है पङे।

क्या जान की कीमत अब समझ रहें,

तो बचा लो इस धरोहर को सदा।

जो दे रही खूबसूरत धरा,

गुनहगार है हर शख्स यहाँ।

प्रकृति ले रही हिसाब यह,

अब तो समझ लो।

क्यूँ है ये बेबस धरा।।

दीक्षा सिंह

Hindi Poem on Importance of Life-Jeevan Ke Pal

जीवन के पल

अनमोल है जिंदगी का हर पल,

वक़्त बह रहा सूरज ढल रहा है नभ पर,

बहते रहे सबको साथ लेके ख़ुशी से,

जैसे नदिया का पानी बहता है निर्मल,

अनमोल है जिंदगी का हर पल l

क़ोई पराया न हो सबको अपना मानते चलो,

वक़्त की हथेली से खुशियाँ बाँटते चलो,

जैसे सूरज रोशनी देता है हर घर,

अनमोल है जिंदगी का हर पल l

सुख हो या दुख कभी नहीं ठहरे,

ये आते जाते है जैसे सागर की लहरे,

हमें पीछे हटना नहीं है लहरों से डरकर,

अनमोल है जिंदगी का हर पल l

हमें मिलकर एक बाग़ लगाना है,

बाग में खुशियों का फूल खिलाना है,

जिससे फूलो की खुशबू बहे हवाओ मे घुलकर,

अनमोल है जिंदगी का हर पल ll

श्रीकांत शर्मा

कविता का भावार्थ: जीवन थोड़ा है खुश रहे और ख़ुशी बांटे

Hindi Poem on Banyan Tree-Main to Bargad Hu

मैं तो बरगद हूं… एक ज़माने से।

आध्यात्म की एक आदिम सी पोथी में किसी बसन्ती से पृष्ठ पर मेरा ब्यौरा कुछ यूं है,

“मैं तो बरगद हूं एक ज़माने से, हूं ठहरा ठहरा सा काल बिन्दु पर… एक ज़माने से ।

तपते तनों की तपिश हरना, भटके मुसाफिरों को शरण देना हैं कुछ काम मेरे एक ज़माने से,

आध्यात्म की एक आदिम सी पोथी में किसी बासंती से पृष्ठ पर मेरा ब्यौरा कुछ यूं है।

रचनाकार: हरेंद्र सिंह लोधी।

In an old book of spirituality

On a yellow page My details are like this:

“I am a banyan For a long time, I have been At a time point For a long time,

To protect hot bodies from heat,

Sheltering wandering travelers I have some work

For a long time,

In an old book of spirituality

On a yellow page my details are like this.

Poet: Harendra Singh Lodhi.

उपर्युक्त काव्य रचना व्यक्ति को आध्यात्मिक होकर उसे परसेवा की सीख देती है और उसे मनुष्य जीवन का महत्व बताती है।

Philosophical Poem on Life-Ehsas

एहसास

न दिन होता,

न रात होती तो ज़िन्दगी यूँ ही तमाम न होती न समय की धारा होती ,

न पलों का हिसाब होता न रंजिशें होती,

न शिकवा होता दूर दूर एक फैला समंदर होता

आकाश तारों से आच्छादित होता कभी मैं सागर की तरंगें बनती ,

तो कभी तारों से खेलती आँख मिचौली न अपने होने का एहसास,

न चिंता कोई भी एक अविरल धारा में बहती हुई कभी चैतन्य में विलीन ,

तो कभी चैतन्य स्वरुप आकार में स्थित उस शिल्पकार की कृति…..

कभी व्यक्त तो कभी अव्यक्त

-सुरेखा कोठारी

Ehsas

Na din hota,

na raat hoti to,

Zindagi yun hi tamaam na hoti

Na samay ki dhaaraa hoti,

Na palon ka hisaab hota na ranjishein hoteen,

Na shikwa hota dur dur tak ek faila samander hota

Aakaash taaron se achhadit hota kabhi main saagar ki tarangen banti,

To kabhi taaron se khelti aankh michauli na apne hone ka ehsaas,

Na chinta koi bhi ek aviral dhaara mein behti hui kabhi chaitanya mein vileen,

To kabhi chaitanya swaroop aakaar mein sthit us shilpakaar ki kriti…..

kabhi vyakt to kabhi avyakt

-Surekha Kothari

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