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Hindi Poem on Daughter Foeticide-भ्रूण हत्या पर कविता

बेटियां बेटियां बेटियां

औरौ के तरह ही रो-रो कर जन्म लेती है बेटियां।

बेटों के तरह ही करती है शैतानियां।

लगे जब भूख तो बेटों के तरह ही रोया करती है बेटियां।

जब फक॔ नही कुछ भी दोनो मे,

फिर जन्म से पहले ही क्यौ मार दी जाती है बेटियां।।

सुबह की पहली किरण होती है बेटियां।

ईश्वर का आशी॔वाद होती है बेटियां।

माँ के कामों में मददगार और पिता का अभिमान होती है बेटियां।

कहने को तो जहाँ मे सबसे दुलारी होती है बेटियां,

फिर जन्म से पहले ही क्यौ मार दी जाती है बेटियां।

बेटियां बेटियां बेटियां!

विवेक कश्यप!

Betiya Betiya Betiya!

Auroo k tarah hi ro- ro kr janm leti h betiya!
Beto k tarah hi krti h saitaniyaa!
Lage jb bhookh to beto k tarah hi roya krti h betiya!
Jab fark nhi kuch v dono mein,
Fir janm se phle hi q maar di jaati h betiya!

Subah ki phli kiran hoti h betiya!
Ishwar ka ashirwad hoti h betiya!
Maa k kaamo mein madadgar aur pita ka avimaan hoti h betiya!
Kehne ko to jaha m sbse dulari hoti h betiya,
Fir janm se phle hi q maar di jti h betiya!
Betiya Betiya Betiya!
-Vivek Kashyap

Hindi Poem on Save Daughter-Beti Hai To Jahaan Hai, Beti Ek Vardaan Hai

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बेटी है तो जहान है, बेटी एक वरदान है ! 

आज देश के हर कोने में, संकट सा मंडराया है !

प्रलय काल दे रहा निमंत्रण, खतरा सिर पर आया है !!

क्यों असुरक्षित हुई बेटियाँ, हिंदुस्तान की धरती पर ?

जिसने नहीं पालकी देखी, सो चढ़ जाती अर्थी पर !!

खून बह रहा कन्याओं का, देख रहे तुम खड़े हुए !

राखी का सम्मान कहाँ है, किस लज्जा में पड़े हुए ?

नहीं बचा सकते बहनों को, ऐ भैया धिक्कार तुम्हें !

इस धरती पर जीवित रहने का, नहीं है अधिकार तुम्हें !!

कहां सो रहे धर्मवान, तुम सत्ता के गलियारे में !

कैसे देश महान रहेगा, कर्म-धर्म अंधियारे में !!

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, तुमने दिया था नारा !

होगी सुरक्षा बेटी की, अब कहाँ अभिमान तुम्हारा !!

शर्म करो ऐ नेताओं, या कुर्सी कर दो खाली !

करो काम ऐसा मंत्री जी, देश में हो खुशहाली !!

कुछ को कोख में मार दिया, नहीं माता-पिता लज्जाते !

बिना पढ़ाऐ भार समझ कर, जल्दी ब्याह कराते !!

फिर भी क्यों दहेज के कारण, आग लगाई जाती !

या तो बेटियाँ स्वयं तंग हो, फांसी पर चढ़ जाती !!

आती नहीं शर्म नामर्दों, इनकी चिता सजाते हुए !

बाहर जाकर निज कर्मों का, फिर गुणगान सुनाते हुए !

डूब मरो ऐ दुनिया वालों, तुम्हें शर्म नहीं आती है ?

क्या सुकून मिलता तुमको, अर्थी बिटिया की जाती है !!

याद रहे जो बेटी को, इस तरह सताया जाएगा !

होगी कयामत दुनिया में, कोई जीव नहीं बच पाएगा !!

ऐ भैया ये विनय हमारी, बेटी की रक्षा करना !

बहन जान कर हर लड़की के, सारे कष्टों को हरना !!

जब बेटी हो जाए सुरक्षितबेटे, बेटे समान अधिकार हो !

निश्चय डूब रही नैया और, देश का बेड़ा पार हो !!

बनकर कृष्ण दु:शासन से, द्रौपदी की लाज बचाना है!

कहे पुष्पेंद्र सिंह यादव, अपना कर्तव्य निभाना है !!
नवयुग की चाह रखने वाले क्रांति कवि -पुष्पेंद्र सिंह यादव