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Patriotic Hindi Poem – Desh Hamara

सबका प्यारा देश हमारा,
सबसे अलग सबसे न्यारा,
इस माटी के जन्में हम हैं,
यह तिरंगा जान से भी प्यारा,
सबका प्यारा देश हमारा….

हर जगह सर्वश्रेष्ठ रहें हम,
हार न कभी मानना काम हमारा,
धरती माँ के लाडले हम हैं,
यह तिरंगा जान से भी प्यारा,
सबका प्यारा देश हमारा…

शीश झुका कर नमन है आपको,
प्यारी धरती माँ,
आपके लिए हम सब पूर्ण समर्पित,
प्यारी धरती माँ,
सबका प्यारा देश हमारा…

– अनुभव मिश्रा

Sabka pyara desh hamara
Sabse alag sabse nayara
Es matti ke janme hum hain
Yeh tiranga jaan se bhi pyara
Sabka pyara desh hamara

Har jagah sarvshesht rahe hum
Haar na kabhi maanna kam hamara
Dharti maa ke ladle hum hain
Yeh tiranga jaan se bhi pyara
Sabka pyara desh hamara

Shish jhuka kar naman hai aapko
Pyari dharti maa
Aapke liye hum sab puran samrpit
Pyari dharti maa
Sabka pyara desh hamara

-Anubhav Mishra

Hindi poem on India – हिंदुस्तान की बातें

ईश्वर अल्लाह भगवान की बातें,
कैसी कैसी हिंदुस्तान की बातें।
गोभी,टमाटर और मटर की कीमत,
करती हैं देखो आसमान की बातें।
कहीं पर जाए भारी न गेहूँ इंसान पर,
करने लगे मंंदिर अजान की बातें।
जब तक धरम का भरम सबपे हावी,
भारी ये रोजा भगवान की बातें।
तब तक कोई पंडित जा पहनेगा टोपी,
करने लगेगा मुसलमान की बातें।
बगुला भगत यूँ हीं नोचेंगे देश को,
करते हुए सब ईमान की बातें।

-अजय अमिताभ सुमन

Ishwar, Allah, Bhagwan ki baatein,
Kasi kasi hindustaan ki baatein
Gobhi tamatar aur matar ki kimmat,
Karti hai dekho aasmaan ki baatein
Kahi par jaye bhari na genhu insaan par
Karne lage mandir anjaan ki baatein
Jab tak dharam ka bhram sabpe havy
Bhari ye roza Bhgwaan ki baatein
Tab tak koi pandit ja pahnega topi
Karne lagega muslim ki baatein
Bugla bhagat yuhi nochege desh ko
Karte hue sab imaan ki baatein

-Ajay Amitabh Suman

Hindi poem on India – आर्यावर्त का गौरव भारत

भ्रमण करते ब्रह्मांड में असंख्य पिण्ड दक्षिणावर्त सुदुर दिखते
कहीं दृग में अन्य कोई वामावर्त हर विधा की नवीन कथा में
निश्चय आधार होता आवर्त सभी कर्मों की साक्षी रही है, पुण्य धरा हे आर्यावर्त !
यह पुण्य धरा वीरों की रही है प्रफुल्लता, नवसष्येष्टि सदा बही है
कोमलता ! लघुता कहाँ ? पूर्णता रही है ; आक्रांता उन्माद को प्रकृति ने बहुत सही है |
सत्य की संधान में विज्ञान अनुसंधान में विश्व – बंधुत्व कल्याण में,
करुणा दया की दान में नहीं अटूट अन्यत्र है योग और न ही ऐसा संयोग|
संसार में शुद्धता संचार में प्राणियों में पूर्णता से प्यार में योग,
आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार में भूमण्डल पर नहीं कोई जगत् उपकार में ;
ये केवल और केवल यहीं पे, आर्यावर्त की पुण्य मही पे !
जहाँ सभ्यता की शुरूआत हुई, हर ओर धरा पर
हरियाली ज्ञान- विज्ञान के सतत् सत्कर्म से फैली रहती थी
उजियाली, हर क्षेत्र होता पावन – पुरातन बच्चों से बूढों तक
खुशिहाली कुलिन लोग मिला करते परस्पर, जैसे प्रातः किरणों की लाली !
पर हाय! आज देखते भूगोल को नीति नियामक खगोल को ;
खंडित विघटित करवाया किसने , कर मानवता को तार- तार,
रक्त- रंजित नृत्य दिखाया किसने ! यह सोच सभी को खाती है
अब असत्य अधिक ना भाती है झुठलाया जिसने सत्य को दबाया
जो अधिपत्य को , इतिहास ना उन्हें छोड़ेगा , परख सत्य !
कहाँ मुख मोड़ेगा | आर्यावर्त का विघटित खंड, आज आक्रांताओं से घिरा भारत है;
शेष खंड खंडित जितने भी, घोर आतंक भूख से पीड़ित सतत् है |
मानवता के रक्षक जो अवशेष भूमी है प्राणप्रिय वसुंधरा ,
समेटी करूणा की नमी है; हर ओर फैलाती कण प्रफुल्लता की, धुंध जहाँ भी जमी है;
अनंत नमन करना वीरों यह, पावन दुर्लभ भारत भूमी है !
अखंड भारत अमर रहे !

~ कवि पं आलोक पान्डेय

Hindi poem on India – तुम लौट के अब न आना

यहाँ बसते हैं सब धर्मों के इंसा
तुम घर सरहद पे बना लेना तहज़ीब
मेरे हिंदुस्तान की ज़रा उनको भी सिखा देना
आईना वो रखना साथ अपने इस पार जो देखें तो
उस पार चमक जाना खुशबू से
मेरे देश की मिट्टी की उनको भी महकना
भूख-प्यास हम सह लेंगे आन-शान तुमको हैं
बचना ये देश हैं वीरों का पीछे न तुम हट जाना
उम्मीद कम हो जब प्राण की तो मुस्कुराना
दिल के दर्द को होटो पे कभी न लाना टूट कर बिखर भी जाओ
अगर तुम ज़र्रा-ज़र्रा तो लौट के तुम न आना
तुम देश पे मर जाना हसरतें अह-ले-वतन की पूरी
तू करके जाना कफ़न तिरंगा हो तेरा लिपट के
उसमे आना तुम देश पे मर जाना,तुम देश पे मर जाना।।

-सलीम राओ

Yaha baste hai sab dharmo ke insa
Tum ghr sarhad ko bana lena tehzeeb
Mere hindustan ki zara unko bhi samjhana
Aaena vo rekhna saath apne is paar jo dekhe to
Us paar chamak jana khushboo se
Mere desh ki unko bhi mehkana
Bhookh pyas hm seh lege aan shaan tumko hai
Bachana ye desh hai veero ka piche na tum hat jana
Ummed jab kam ho jaan ki ti muskurana
Dil ke dard ko hoto pe kabhi na lana tut kar bikhar bhi jao
Agar tum zarra zarra to laut ke tum na aana
Tum desh pe mar jana hasrate ehle-e-vaten ki puri
Tu karke jana kafan tiranga ho tera lipat ke
Usme aana tum desh pe mar jana tum desh pe mar jana.

-Saleem Rao

Hindi poem on India – हे मातृभूमि! तेरी ख़ातिर

bharat-mataImage source: prernabharti.com

हे मातृभूमि! तेरी ख़ातिर,
लेकर यह अभियान चले।
अपनी जान हथेली पर हम,
तुझ पर होने बलिदान चले।
हम घट-घट के वासी हैं,
जो भी नज़र उठा चले।
हम वीर नहीं-हम वीर नहीं,
इसकी रक्षा करने मिलकर साथ चले।
रोम-रोम बस रोम-रोम,
बस यही हमें याद दिलाता है।
हम रह पाये या न रहें,
यह लेकर मन में प्रतिघात चले।
हमें प्रेम है प्यार बहुत है,
बलिहारी इस पर हम होने चले।
घात-घात है बात-बात है,
घात-बात पर अपना सिर चढ़ा चले।
यह देश नहीं-यह देश नहीं,
हम कहते इसको भारत माता।
जिसने देखा या घात किया,
उसको करने हम ख़ाक चले।
मित्र के साथ मित्रवत् बनें,
हन्त के साथ अरिहन्त बन चले।
देश का जवां बच्चा इस पर,
क्यों न न्यौछावर होना चाहे?
इसे देख सब अचरज में पड़े,
तथा हाथ मलते चले-मलते चले।
इसे देख ऐसा लगता सबको,
हम लोग नहीं सब हैं भारतवासी।
आओ नमन करें सब मिलकर,
जो रक्षा करते चलते चले-चलते चले।
हे मातृभूमि! तेरी ख़ातिर,
लेकर यह अभियान चले।
अपनी जान हथेली पर हम,
तुझ पर होने बलिदान चले।

-रचयिता- सर्वेश कुमार मारुत
Hei matarbhumi teri khatir
Lekar yeh abhiyaan chle
Apni jaan hathali par hum
Tujh par hone balidaan chle
Hum ght ght k basi hai
Jo bhi nazar utha chle
Jum veer nai hum veer nahi
Eski rksha krne mil kar sath chle
Rom rom bs rom rom
Bas yhi hum yaad dilata hai
Hum reh paye ya na rehe
Yeh lekar man me partighat chle
Hme prem hai pyar bhut hai
Balihari es par hum hone chle
Ghaat ghaat hai baat baat hai
Ghaat baat par apna seer chdha chle
Yeh desh nahi yeh desh nahi
Hum khte esko bharat mata
Jisne dekha ya ghaat kiya
Usko krne hum khak chle
Mitar ke sath mitrbat bne
Hant k sath arihant ban chle
Desh ka jwa bcha es par
Kyon na nyochawar hona chahe
Ese dekh sab achraz me pade
Ttha hath malte chle malte chle
Ese dekh esa lagta hai sabko
Hum log nahi sab hai bharat basi
Aao naman kre sab milkar
Jo rkhsha krte chlte chle chalte chle
He matrbhumi teri khatir
Lekar ye abhiyaan chle
Apni jaan hatheli par hum
Tujhpar hone balidaan chle

-Servesh Kumar Marut