
कविता का शीर्षक: एक मुसाफिर
साथ चलता एक मुसाफिर
हर बात मानता वह मुसाफिर
हर बार काम आता वो ही मुसाफिर
किसको पड़ी थी उस मुसाफिर की
हर बार अकेला ही छोड़ दिया जाता उसे
न जाने कितनों के काम वह आता
बिना किसी उम्मीद के, वह हर किसी की मदद करता
सामने उसके बढ़ाई होती
कहने को तो साथ रहता है
पर हर बार तनहा ही रह जाता है
कवयित्री का नाम -अंजलि कुमारी
कविता का सार:
इस कविता के माध्यम से अंजलि जी ने जीवन के रास्ते पर चल रहे मुसाफिर की चर्चा की है। वह मुसाफिर सबसे मिलता है, उनकी मदद करता है किन्तु अपने रास्ते पर अकेले ही अग्रसर है।
Translation of Poetry:
This poem has been composed by Ms. Anjali Kumari. In this poem, she talks about a traveler who is helping others and yet keeps moving on his path of line as a lonely person. The poem has a deep connotation towards the journey of life where we do meet people for a short time and then carry on with our lives.




