Category Archives: Hindi Poems on Places

Hindi poem on India-देश का दुश्मन

देश का दुश्मन वही नहीं होता है
जो सीमाओं पर हमला करता है
जो आतंक फैलाता है स्मगलिग करता है।
देश का दुश्मन वह भी होता है
जो विकास की फाईले लटकाता है
विकास के नाम पर गावों को उजाड़ता है
दवाओं के अभाव मे बच्चो को मारता है
शिक्षा -स्वास्थ्य के मौलिक हक को व्यापार बनाता है
युवाओ के हाथो से काम छीनता है
देशवासियो के जाति-धर्म के शब्द बीनता है

-पुलस्तेय 

Desh ka dushman vaahee nahin hota hai
Jo seemaon par hamala karata hai
jJo aatank phailata hai meglig karata hai
Desh ka dushman vah bhee hota hai
Jo vikaas kee phaeele latakaata hai
Vikaas ka naam par gaavon ko ujaadata hai
Davaon ke abhaav mein bachcha ko maarata hai
Shiksha-svasth ka mool hak ko vyaapaar banaata hai
Yuvaon ke haathon se kaam chheenate hain
Deshavaasiyon ke jaati-dharm ke shabd binata hai.

-Pulsatey

Hindi poem on India – आर्यावर्त का गौरव भारत

भ्रमण करते ब्रह्मांड में असंख्य पिण्ड दक्षिणावर्त सुदुर दिखते
कहीं दृग में अन्य कोई वामावर्त हर विधा की नवीन कथा में
निश्चय आधार होता आवर्त सभी कर्मों की साक्षी रही है, पुण्य धरा हे आर्यावर्त !
यह पुण्य धरा वीरों की रही है प्रफुल्लता, नवसष्येष्टि सदा बही है
कोमलता ! लघुता कहाँ ? पूर्णता रही है ; आक्रांता उन्माद को प्रकृति ने बहुत सही है |
सत्य की संधान में विज्ञान अनुसंधान में विश्व – बंधुत्व कल्याण में,
करुणा दया की दान में नहीं अटूट अन्यत्र है योग और न ही ऐसा संयोग|
संसार में शुद्धता संचार में प्राणियों में पूर्णता से प्यार में योग,
आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार में भूमण्डल पर नहीं कोई जगत् उपकार में ;
ये केवल और केवल यहीं पे, आर्यावर्त की पुण्य मही पे !
जहाँ सभ्यता की शुरूआत हुई, हर ओर धरा पर
हरियाली ज्ञान- विज्ञान के सतत् सत्कर्म से फैली रहती थी
उजियाली, हर क्षेत्र होता पावन – पुरातन बच्चों से बूढों तक
खुशिहाली कुलिन लोग मिला करते परस्पर, जैसे प्रातः किरणों की लाली !
पर हाय! आज देखते भूगोल को नीति नियामक खगोल को ;
खंडित विघटित करवाया किसने , कर मानवता को तार- तार,
रक्त- रंजित नृत्य दिखाया किसने ! यह सोच सभी को खाती है
अब असत्य अधिक ना भाती है झुठलाया जिसने सत्य को दबाया
जो अधिपत्य को , इतिहास ना उन्हें छोड़ेगा , परख सत्य !
कहाँ मुख मोड़ेगा | आर्यावर्त का विघटित खंड, आज आक्रांताओं से घिरा भारत है;
शेष खंड खंडित जितने भी, घोर आतंक भूख से पीड़ित सतत् है |
मानवता के रक्षक जो अवशेष भूमी है प्राणप्रिय वसुंधरा ,
समेटी करूणा की नमी है; हर ओर फैलाती कण प्रफुल्लता की, धुंध जहाँ भी जमी है;
अनंत नमन करना वीरों यह, पावन दुर्लभ भारत भूमी है !
अखंड भारत अमर रहे !

~ कवि पं आलोक पान्डेय

Hindi poem on India – तुम लौट के अब न आना

यहाँ बसते हैं सब धर्मों के इंसा
तुम घर सरहद पे बना लेना तहज़ीब
मेरे हिंदुस्तान की ज़रा उनको भी सिखा देना
आईना वो रखना साथ अपने इस पार जो देखें तो
उस पार चमक जाना खुशबू से
मेरे देश की मिट्टी की उनको भी महकना
भूख-प्यास हम सह लेंगे आन-शान तुमको हैं
बचना ये देश हैं वीरों का पीछे न तुम हट जाना
उम्मीद कम हो जब प्राण की तो मुस्कुराना
दिल के दर्द को होटो पे कभी न लाना टूट कर बिखर भी जाओ
अगर तुम ज़र्रा-ज़र्रा तो लौट के तुम न आना
तुम देश पे मर जाना हसरतें अह-ले-वतन की पूरी
तू करके जाना कफ़न तिरंगा हो तेरा लिपट के
उसमे आना तुम देश पे मर जाना,तुम देश पे मर जाना।।

-सलीम राओ

Yaha baste hai sab dharmo ke insa
Tum ghr sarhad ko bana lena tehzeeb
Mere hindustan ki zara unko bhi samjhana
Aaena vo rekhna saath apne is paar jo dekhe to
Us paar chamak jana khushboo se
Mere desh ki unko bhi mehkana
Bhookh pyas hm seh lege aan shaan tumko hai
Bachana ye desh hai veero ka piche na tum hat jana
Ummed jab kam ho jaan ki ti muskurana
Dil ke dard ko hoto pe kabhi na lana tut kar bikhar bhi jao
Agar tum zarra zarra to laut ke tum na aana
Tum desh pe mar jana hasrate ehle-e-vaten ki puri
Tu karke jana kafan tiranga ho tera lipat ke
Usme aana tum desh pe mar jana tum desh pe mar jana.

-Saleem Rao

Hindi Poem for Women – समानता

अंदर से रोती फिर भी बाहर से हँसती है
बार-बार जूड़े से बिखरे बालों को कसती है
शादी होती है उसकी या वो बिक जाती है
शौक,सहेली,आजादी मायके में छुट जाती है
फटी हुई एड़ियों को साड़ी से ढँकती है
खुद से ज्यादा वो दुसरो का ख्याल रखती है
सब उस पर अधिकार जमाते वो सबसे डरती है
क्योंकि बिकी हुई औरत बगावत नही करती है।

शादी हकोर लड़की जब ससुराल में जाती है
भूलकर वो मायका घर अपना बसाती है
घर आँगन खुशियो से भरते जब वो घर में आती है
सबको खाना खिलाकर फिर खुद खाती है
जो घर संभाले तो सबकी जिंदगी सम्भल जाती है
लड़की शादी के बाद कितनी बदल जाती है।
गले में गुलामी का मंगलसूत्र लटक जाता है
सिर से उसका पल्लू गिरे तो सबको खटक जाता है
अक्सर वो ससुराल की बदहाली में सड़ती है
क्योंकि बिकी हुई औरत बगावत नही करती है।

आखिर क्यों बिक जाती, औरत इस समाज में?
क्यों डर-डर के बोलती, गुलामी की आवाज में?
गुलामी में जागती हैं, गुलामी में सोती हैं
दहेज़ की वजह से हत्याएँ जिनकी होती हैं
जीना उसका चार दीवारो में उसी में वो मरती है
क्योंकि बिकी हुई औरत बगावत नही करती है।

जिस दिन सीख जायेगी वो हक़ की आवाज उठाना
उस दिन मिल जायेगा उसे सपनो का ठिकाना
खुद बदलो समाज बदलेगा वो दिन भी आएगा
जब पूरा ससुराल तुम्हारे साथ बैठकर खाना खायेगा
लेकिन आजादी का मतलब भी तुम भूल मत जाना
आजादी समानता है ना की शासन चलाना
असमानता के चुंगल में नारी जो फँस जाती है
तानाशाही का शासन वो घर में चलाती है
समानता से खाओ समानता से पियो
समानता के रहो समानता से जियो
असमानता वाले घरों की, एक ही पहचान होती है
या तो पुरुष प्रधान होता या महिला प्रधान होती है
रूढ़िवादी घर की नारी आज भी गुलाम है
दिन भर मशीन की तरह पड़ता उन पे काम है
दुःखों के पहाड़ से वो झरने की तरह झरती है
क्योंकि बिकी हुई औरत बगावत नही करती है।

-राहुल रेड

Hindi Poem on Farmer-किसानो की जमीने

किसानो की जमीने मकान बेच देगें
पूँजीपतियों के लिए जहान बेच देंगे

सिंघासन को अपनी जागीर समझ रखा
बस चले उनका तो संविधान बेचे देगें

दुनियाँ जानती है हमे बुद्ध के नाम से
एक दिन ये हमारी पहचान बेच देगें

कुछ नहीं बचेगा देश में बेंचने को तब
एक एक करकेे सब इन्शान बेचे देगें

चुप रही जनता अगर आज भी ऐसे तो
देख लेना कल ये हिन्दुस्तान बेच देगें।

– राहुल रेड

kisano ki jamine makan beich denge
Punjipatiyon ke liye jahan beich denge

sighasan ko apni jagir samjh rakha
bas chale unka to savidhaan beich denge

duniya janti hai hame budh ke naam se
ek din ye hamari pehchan beich denge

Kuch nai bachega desh me bechne ko tab
ek ek kar ke sab Insaan beich denge

chup rahi janta agar aaj bhi aise to
dekh lena kal ye hindustaan beich denge

– Rahul Red