Hindi Poems on Festivals
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Hindi Poem on Makar Sakranti-Bezubaan Parinda

मकर संक्रांति:::: बेज़ुबान परिन्दा
बौराया हुआ शहर अपनी कटी पतंगे ढूंढ रहा है,
खामोश मांजा सर सर हाथ से निकल रहा है,
आसमान में जलती लालटेनें, रोशन सा सकरात मन रहा है,
एक बच्चा हाथ में कटी पतंगे का ढेर लिए घर लौट रहा है,
कल लाल परसों पीली दिन भर का उत्सव नहीं,
साल भर की उम्मीदें जगा रहा है,
बेखौफ जमीं की दूरी को नगें पांव खगालते,
नजरें ऊपर आसमान की रोशनियों को ढूंढते,
सामने बेसुध पडा परिन्दा, मांजे के जख्म में तर बतर सांसे गिन रहा है,
एक रोशनी होले से नीचे आयी,
आह! गाड़ियों की सरसराहट खून में तब्दील, हर शख्मुस मुआयना कर रहा है,
बेसुध परिन्दा मानो चीखे जा रहा है,
कोई मसीहा इधर भी देखे,
शहर की बेपरवाही से कोई बेजान कट रहा है,
तो कोई गिरती रोशनियों से जल रहा है,
फिर कौन कहता है कि मेरा शहर संवर रहा है,
झुठी चमक से रोशन और सच से सब कुछ दहक रहा है,
तीन से फुटपाथ पर बैठा गोलू दुबका हुआ है,
रंगीन पतंग से बहक रहा है, मांजे से कट रहा है,
और पता नहीं किस बेरहम बेपरवाही से सुकून जल रहा है,
बौराया हुआ शहर अपनी कटी पतंग को ढूंढ रहा है!!!!!!!!
डाॅ. अवन्तिका
Hindi Poem on Women Empowerment-Jeene Ki Adhikari Naari
जीने की अधिकारी नारी
ये पुरूषत्व का मोहपाश,
कर नारी का अपमान,
रचता मानव अपना ही विनाश।
जीने की अधिकारी नारी जितना है पुरूष अधिकारी।
सज्जन मानव दुर्जन मानव समाज एक ही में रहते।
सज्जनता उन्नति की द्योतक,
दुर्जन पतन को लाते है।
आती है कयामत जब अपमानित होती नारी।
जीने की अधिकारी नारी,जितना है पुरूष अधिकारी।
नारी तुम हो अपनी सहाय,
दुर्गा काली बन उभरो जग में।
क्रूर दानव रूपी मनुष्य को,
खुद पे हावी मत होने दो।
जिसने तुझसे वजूद छीना,
उसे जीने का अधिकार नही।
काट ड़ालो उन क्रूर हाथों को,
जो उठे नारी तेरे अपमान में।
तुम ही हो मनु की श्रद्धा,
तुम शिव की गौरी।
महाशक्ति,जन्मदात्री तुम ब्रह्माणी,रूद्राणी।
उठो बहुत सहा अपमान
अपनी रक्षा को स्वयं प्रवृत होवो,
अपने सम्मान को लज्जित ना होने दो।
बन नई पीढ़ी की नई लहर उभरो।
सज्जन मानव का सम्मान करो,
दुर्जन को हावी ना होने दो।
अपना अधिकार ग्रहण करो,
जिसकी तुम अधिकारी हो।
जीने की अधिकारी नारी,
जितना है पुरूष अधिकारी।
-कविता यादव