जीवन के इस खेल में, तू सौ बार हारेगा मंज़िल और जीत में कभी एक कदम का फासला रहेगा पर हर हार के बाद, सीधा सा एक रास्ता होगा चल कर जिसपर तू, अपनी मंज़िल के पास होगा डर लगेगा बहुत पर, उसे तू खुद ही हराएगा जिस दिन तू अपने मुकाम पर पहुंचेगा, तब ये धूप छाँव का खेल ख़त्म हो जायेगा
कवयित्री का नाम -जान्हवी गुप्ता
कविता का भावार्थ:
कवयित्री जान्हवी जीवन के संघर्षों के विषय में सकरात्मक सोच रखने की प्रेरणा दे रही हैं।
Translation of Poem:
In this poem, poetess Janhvi pens the struggles of life and how patience and perseverance is required to win despite several failures.
दरों दीवार अलग – कूचा अलग माना अलग है मकां फिर भी नफ़्स हमारी जुदा है कहाँ कभी तो इनायत होगी, और पिघलेगी तू एक रोज़ बा – दस्तूर उसी इंतज़ार में बैठे हैं यहाँ बे – वज़ह है ये ज़िक्र की खता किसकी थी गाज दोनों पे गिरी, क्या कहें किसने कितना सहा
सहल नहीं की भूल जाएं जो कुछ है हुआ मुश्किल भी नहीं की, फिर सजायें एक हँसता जहां
आर्य वशिष्ठ
Ummeed
Dar-o-deewar alag, kucha alag Mana alag hai manka Fir bhi nafs humari Juda hai Kanha
Kabhi to inaayat hogi, or Pighlegi tu ek roj Ba-dastoor usi intezaar main Baithe hain yahan
Be-wazah hai ye zikr ki khata kiski thi Gaaj dono pe giri, kya kahain Kisane kitna Saha
Sahal nahi ki bhul jaayen Jo kuch hai huaa Mushkil bhi nahi ki, fir sajaaye Ek hansta jahaan.
सहयोग
करें हम सदा सहयोग सभी का ।
यही मकसद हो अपनी ज़िन्दगी का ।।
ये जिंदगी मिली बड़ी रहमतों से,
इसे हम सँवारे ,इसे हम सजाएँ।
करे खूब कोशिश, मेंहनत के बल पे इसे और बेहतर बनाएँ।।
मुश्किलें हरा दें, जहाँ को दिखा दें अपने दम पर हम ।
ना हारें कभी किसी बात से डटे रहे जीवन भर हम।।
-संजय
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